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________________ नीति वाक्यामृतम् न भीणा जायते जार मानिया यशालिनः वंश क्रमेण सा याति सहैवास्य सुकर्मणः ॥2॥ कुरल प..12 अर्थ :- न्यायनिष्ठ की सम्पदा कभी नष्ट नहीं होती है । वह दूर तक पीढी-दर-पीढी पर्यन्त मित्र के समान चली आती है । और भी कहा है : स्तुतिर्निन्दा च सर्वेषां जायेते जीवने धुवम् । न्यायनिष्ठा परं किञ्चिदपूर्व वस्तु धीमताम् ।।5।। कुरल-कुन्दकुन्दाचार्य कृत। अर्थ :- प्रशंसा और निन्दा के प्रसंग मनुष्य मात्र के साथ जुड़े हुए हैं । परन्तु एक न्यायनिष्ठ मन बुद्धिमानमनीषियों के लिए यह गौरव की वस्तु है ।। जो व्यक्ति न्यायनीति से तनिक भी नहीं चिगता, मन में चलायमान होने का विकल्प नहीं करता उसकी बात सत्य और सर्वमान्य होती है । न्यायच्युत मानव तिरस्कार का भाजन होता है । शंकास्पद बन जाता है और अप्रिय के साथ अविश्वास का पात्र भी हो जाता है । अतएव प्रत्येक यशाभिलाषी धर्मज्ञ पुरुष को शुद्ध न्याय का ही आश्रय लेना चाहिए । अपने में स्वयं आश्वस्त रहता है, वह सर्वत्र मान्य-समान का पात्र बन जाता है । शास्त्र ज्ञान सं पुरुषों को लाभ क्या है? अलोचनगोचरे यर्थे शास्त्रं तृतीय लोचनं पुरुषाणाम् 1135 ।। अन्वयार्थ :- आगम में (हि) निश्चय से (अलोचनगोचरे) नेत्रों से नहीं दिखलाई देते (तेषामवलोकनाय) उन पदार्थों के दृष्टिगोचर होने का उपाय (पुरुषाणाम) मनुष्यों के लिए (शास्त्र) आगम (तृतीय) तीसरा (लोचन) नेत्र कहा है । कहा भी है - "आगम तीजा नेत्र बताया" कहा है । बहुत सूक्ष्म और नवीन पदार्थ हैं जिन्हें चर्म चक्षओं से देखना असंभव या अशक्य है, तो भी आगम के रचयिता आचार्य देव ने आगम द्वारा उनका दृष्टिगत होना संभव कहा है । विशेषार्थ :- "साधूनां चक्षु आगम:'' आगम चक्षु साधुः" कहा है । साधु आगम चक्षु होते हैं अर्थात् आगम द्वारा तत्व परिज्ञान कर रत्नत्रय की सिद्धि में समर्थ होते हैं । कुन्दकुन्द स्वामी ने कहा है : द्वे चक्षुषी मनुष्याणां जाते र्जीवित जागृते । एकं वर्णसमाम्नायो द्वितीयञ्चाङ्कसंग्रहः ।।2।। यः शिक्षितः स एवास्ति चक्षुष्मानिह भूतले । अन्येषान्तु मुखे नूनमस्ति गर्त द्वयाकृति. ।।3। कुरल प. 40 कुन्दकुन्द 118
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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