________________
नीति वाक्यामृतम्
साधु चार प्रकार के हैं- 1. कुटीचर, 2. वव्होदक, 3. हंस और 4. परमहंस ।
विशेषार्थ :- एक दण्डी-दण्ड में जनेऊ या चोटी बांधकर रखता है या नहीं भी रखता है, झोंपड़ी में रहता है, पुत्र के मकान में एकबार स्नान करता है और कुटिया में निवास करता है उसे 'कुटीचर' कहते हैं । जो कुटिया में रहकर गोचरीवृत्ति से आहार करता हो और विष्णु का जाप जपने में तत्पर हो उसे वव्होदक
कहते हैं।
जो ग्राम में एक रात्रि और शहर - नगर में त्रिरात्रि निवास करता हो, धूप और अग्नि से शून्य ब्राह्मणों के घर जाकर थाली में अथवा हस्तपुट में स्थापित आहार ग्रहण करता है । जिसे आत्मा और शरीर का भेद विदित हुआ हो उसे 'हंस' कहते हैं।
जो स्वेच्छा से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्णों से गोचरी वृत्ति से आहार ग्रहण करता हो, दण्डविशेष का धारक हो, समस्त कृषि, और व्यापार से आदि सभी आरम्भ का त्यागी और वृक्षों के मूल में बैठ कर भिक्षा द्वारा लाया हुआ आहार ग्रहण करता हो उसे परमहंस कहते हैं ।
"नोट :उपर्युक्त मान्यता जैनसिद्धान्त के अनुकूल नहीं है । क्योंकि हमारे आगम में "पुलाक व कुश कुशील निर्ग्रन्थस्नातकाः निर्ग्रन्थाः !!" सूत्र द्वारा पाँच भेद कहे हैं। जिसका लक्षण पृथक् पृथक् आगम से ज्ञात करें । अन्य मतियों के समाधानार्थ उनका मत यहाँ लिखा होगा ऐसा प्रतीत होता है ।"
अब राज्य का मूल बताते हैं :
राज्यस्य मूलं क्रमो विक्रमश्च ॥27॥
अन्वयार्थ :- (राजस्य ) राज्य का ( मूलम् ) मूल (क्रमः) परम्पराक्रम से आया क्रम (च) और (विक्रमः) अपना शौर्य (अस्ति ) है ।
राज्य की जड़ एक तो कुलवंश परम्परा है और दूसरी स्वार्जित विक्रम हैं ।
विशेषार्थ :- परम्परागत आया हुआ सौजन्य, न्यायाचार - सदाचार और स्वयं का विक्रम राज्य की जड़ हैंमूल हैं । जिस प्रकार जड़ सहित वृक्ष तना, डाली, शाखा प्रशाखा, पत्र, पुष्प एवं फलों से विस्तृत, भरित और फलित होता हुआ शोभायमान होता है उसी प्रकार कुल परम्परा से सुरक्षित चला आया राज्य, योग्य, पराक्रमी - न्यायप्रिय, दूरदर्शी राजा को प्राप्त कर विस्तृत समृद्ध और यशस्वी प्रख्यात होता है । धन-हाथी, घोटक, रथ, पयादे आदि से एवं धान्यादि से समृद्ध रहता है । कुन्दकुन्द देव कहते हैं -
-
।
परित्राणाय साधूनां श्रेयान् दुष्टवधस्तथा तृण्योच्छेदो यथा क्षेत्रे शालीनां हि समृद्धये ॥ 10 ॥
कुरल. ॥
अर्थ सत्पुरुषों की रक्षा, और कल्याण के लिए जो राजा दुष्टों का दमन करता है वह फलित क्षेत्र से घास को निकाल फेंकने के समान राज्य की समृद्धि के लिए ही होता है 110 || यह राज्य की मजबूती का हेतू है। शुक्र विद्वान का इस विषय में मत है कि -
111