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________________ नीति वाक्यामृतम्। कलत्र रहितस्यात्र यस्य कालोऽतिवर्तते । कष्टे न मृत्युपर्यन्तो ब्रह्मचारी स नैष्ठिकः ।।1।। अर्थ:-जिसका समय जीवन पर्यन्त अविवाहित-बिना विवाह के यापन होता है वह नैष्ठिक ब्रह्मचारी कहलाता है । अर्थात् बाल ब्रह्मचारी को नैष्ठिक ब्रह्मचारी कहते हैं । जैनाचार्यों ने 5 प्रकार के ब्रह्मचारियों का निरूपण किया है : प्रथमाश्रमिणः प्रोक्ता ये पञ्चोपनयादयः । तेऽधीत्य शास्त्रं स्वीकुर्युदारानन्यत्र नैष्ठिकात् ॥ अर्थ :- उपनयन, नैष्ठिकादि पाँच प्रकार के ब्रह्मचारी आगम में कहे हैं । इनमें नैष्ठिक को छोड़कर शेष चार प्रकार के ब्रह्मचारी अध्ययनपूर्ण होने पर विवाह करते हैं - गृहस्थाश्रम स्वीकार करते हैं । नैष्ठिक सदैव ब्रह्मचारी रहता है। पुत्र का लक्षण कहते हैं : य उत्पन्नः पुनीते वंशं स पुत्रः ।।11॥ अन्वयार्थ :- (यः) जो (उत्पन्नः) जन्म लेकर (वंश) वंश-कुल को (पुनीते) पवित्र करता है (सः) वह (पुत्रः) पुत्र (अस्ति) है । जो जन्म लेकर नैतिक सदाचार रूप प्रवृत्ति से अपने कुल को पवित्र करता है वही सच्चा पुत्र है । विशेषार्थ :- "पुनाति कुलमिति पुत्रः" जो कुल को पवित्र करे उसे पुत्र कहते हैं । भागुरि ने भी कहा कुलं पाति समुत्थो य: स्वधर्म प्रतिपालयेत् । पुनीते स्वकुलं पुत्रः पितृमातृपरायणः ।। पुत्रः पुपूषोः स्वात्मानं सुविधेरेव के शवः । य उपस्कुरुते वप्तुरन्यः शत्रुः सुतच्छलात् ॥1॥ सागार धः मृ. अर्थ :- जो माता-पिता की सेवा में तत्पर होकर अपने सदाचार रूप धर्म का पालन करता है वह कुलदीपककुल को पवित्र करने वाला पुत्र कहलाता है ।॥ आशाधर जी कहते हैं "जो अपना पालन-पोषण करने वाले माता-पिता का विधिवत्-सुविधिराजा के केशव नामक पुत्र की तरह उपकार सेवाभक्ति करता है (कथा के लिए आदि पु. प. 10 वां देखें) वही यथार्थ में पुत्र है शेष पुत्र के छल से शत्रु या कर्जदार समझने चाहिए । कहा भी है : 100
SR No.090305
Book TitleNiti Vakyamrutam
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorNathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages645
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size19 MB
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