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नीति वाक्यामृतम्
जहाँ शिष्टों का निवास और दुष्टों का परिहार हो वह राज्य है । अब वर्गों का भेदपूर्वक लक्षण करते हैं :
ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्राश्च वर्णाः ।।6॥ (ब्राह्मणाःक्षत्रिया विशःशूद्राश्च वर्णाः " मु.मू. पुस्तक में पाठ है) अन्वयार्थ :- (ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यशूद्राश्च) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र (वर्णाः) ये वर्ण कहते हैं वर्ण चार हैं - 1. ब्राह्मण 2. क्षत्रिय 3. वैश्य और 4. शूद्र ।
विशेषार्थ :- भगवन्त जिनसेनाचार्य ने आदिपुराण में लिखा है कि सृष्टि के विधाता आदिनाथ भगवान ने क्षत्रिय वैश्य और शूद्र इन तीन वर्षों की व्यवस्था की थी । अर्थात तीन वर्ण प्रकट किये । ये अपने-अपने कर्तव्यानुसार क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कहलाते थे । यथा :
उत्पादितास्त्रयो वर्णास्तदा तेनादिवेधसा । क्षत्रिया वणिजः शूद्राः क्षतत्राणादिभिर्गुणैः ।।
आदि पु. प्र. 16 उस समय जो शस्त्र धारण कर जीविका करते थे वे क्षत्रिय और जो खेती, व्यापार और पशुपालन कर जीविका चलाते थे वे वैश्य कहलाते थे । जो क्षत्रिय तथा वैश्यों की सेवा सुश्रुषा करते थे वे शूद्र कहलाते थे उनके भी 1. कारु और 2. अकारू भेद किये गये थे । धोबी, नाई वगैरह कारु और उनके भिन्न अकारु कहलाते थे । यथा :
क्षत्रियाः शस्त्रजीवित्वमनुभूय तदऽभवन् । वैश्याश्च कृषिवाणिज्य पशुपाल्योपजीविनः ।।2।। तेषां शुश्रूषणाच्छू दास्ते द्विधा कार्यकारवः । कारवो रजकाधाः स्युस्ततोऽन्ये स्युरकारवः ।।॥ कारवोऽपि मता द्वधा स्पृश्यास्पृश्यविकल्पतः । तत्रास्पृश्याः प्रजावाह्याः स्पृश्याः स्तुः कर्तृकादयः।। यथा स्वं स्वोचितं कर्म प्रजा दध्युरसंकरं विवाह ज्ञातिसंबन्ध व्यवहारश्च तन्मतम् ।।॥ स्व दोभ्यां धारयन् शस्त्रं क्षत्रियानसृजद्विभुः । क्षत त्राणे नियुक्ता हि क्षत्रियाः शस्त्रपाणयः ।।6। अरुभ्यां दर्शयन् यात्रामस्नाक्षीद्वणिजः प्रभुः । जलस्थलादि यात्राभिस्तद् वृत्तित्र्तिया यतः ।।7।।