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नीति वाक्यामृतम्
सर्वज्ञ देवमपहाय परो मनुष्यएतां श्वभ्रभूमिमुपयाति नरोऽभिमानी ।।1।।
स्लो.सं. अर्थ :- अहंकारी मनुष्य महा राख नरक में जाता है । उस नरक क घार दुःखों का वर्णन सर्वज्ञ भगवान के अतिरिक्त अन्य कोई हजारों जिलाओं से हजारों वर्षों तक भी वर्णन करता रहे तो भी नहीं कर सकता है ।
सारांश यह है कि मान स्व-पर घातक है इसका परित्याग करना ही श्रेष्ठ है कहा है "मान महाविष रूप" महाभंयकर विष के समान है मान ।
अवंश संभवो राजा, मूर्खपुत्रो हि पण्डितः ।
अधनेन धनं प्राप्तं, तृणवन्मन्यते जगत् 18॥ अर्थ :- यदि नीच कुल में उत्पन्न मनुष्य राजा हो जावे, मूर्ख का पुत्र पण्डित बन जावे, और निर्धन को धन मिल जावे तो वह गर्व से जगत् को तृण के समान मानता है In8 ॥ मामी का पद-पद पर मान भंग होता है
वरं प्राणपरित्यागो न मान परिखण्डनम् ।। मरणे क्षणिकं दुःखं मान भङ्गे पदे-पदे ।।26॥
श्लो. सं.॥ अर्थ :- प्राण त्याग श्रेष्ठ है, मान भंग होकर जीना अच्छा नहीं । क्योंकि मरण होने पर एक क्षण का कष्ट होता है, परन्तु मानभंग होने पर पद-पद पर संकट-पीड़ा सहनी पड़ती है । अभिप्राय यह है कि अहंकारी या दम्भी को प्रतिकदम अपमान की त्रास सहनी पड़ती है ।
___ स्वाभिमान बुरा नहीं, परन्तु अपमान का हेतू अहंकार खोटा है । मान नहीं करना चाहिए । मान मूर्खता का चिन्ह है-मूर्ख के 5 चिन्ह हैं :
मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि, गर्वी दुर्वचनी तथा ।
हठी चाप्रियवादी च, परोक्तं नैव मन्यते ।।25॥ अर्थ :- अभिमानी मूर्ख के पाँच चिन्ह हैं - 1. अहंकार, 2. खोटे वचन बोलना, 3. हठग्राहता, 4. अप्रिय वचन बोलना और शास्त्रोक्त उपदेश को स्वीकार नहीं करना मान कषाय के आवरण में आवृत मनुष्य उपर्युक्त लक्षण युक्त होकर उभय लोक में अयश, निन्दा, दुःख और दुर्गति का पात्र होता है । अत: मान कषाय का सर्वथा त्याग ही करना चाहिए । यह सर्व दुःखों का हेतू है । मद का लक्षण कथन
__ "कुलबलैश्वर्यरूपविद्यादिभिरात्माहंकारकरणं परप्रकर्षनिबंधनं वा मदः ।।6॥" ___ अन्वयार्थ :- (आत्म) अपने (कुल, बल, ऐश्वर्य, रूप, विद्यादिभिः) कुल, शक्ति, वैभव, सौन्दर्य, विज्ञान्
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