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________________ ॐ नीतियाक्यामृत के __ सदा नीच कामोंमें तत्पर रहनेवाले शूद्रोंकी रचना भगवान्ने अपने पैरोंसे ही की, सो ठीक ही है। क्योंकि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य इन उत्तमवों के पैर दावना, सवप्रकारसे उनकी सेवाशुश्रूषा करना और उनकी श्राज्ञाका पालन करना श्रादि शूद्रोंकी आजीविका अनेक प्रकारकी कही गई है ||८|| इसप्रकार तीनों वर्गमा सृष्टि तो नयम ही होकी यो, उसके बाद भगवान् ऋषभदेवके पुत्र महाराज भरत अपने मुखसे शास्त्रोंका अध्ययन कराते हुए ब्राह्मणोंकी रचना करेंगे और पढ़ना, पढ़ाना, दानदेना, दानलेना और पूजा करना कराना श्रादि उनकी आजीविकाके उपाय होंगे | उक्त वर्षों के विषयमें प्राचार्यश्रीने लिखा है कि प्रतोंके संस्कारसे ब्राह्मण, शस्त्रधारण करनेसे क्षत्रिय, न्यायपूर्वक द्रव्य कमानेसे वैश्य और नीचधृत्तिका श्राश्रय करनेसे शूद्र कहलाते हैं ।। १० ।। इसप्रकार इतिहासके आदिकालमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शद्र इन चारों वोंकी सृष्टि हुई थी अत: आचार्यश्री सोमदेवसूरिने भी उक्त चारों वणोंका निरूपण किया है ।। अब आश्रमों के भेदोंका वर्णन करते हैं: ब्रह्मचारी गृही वानप्रस्थो यतिरित्याश्रमाः ॥७॥ अर्थ-ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और यत्ति ये चार आश्रम हैं ।। ७ ।। विशदण्याख्याः --अन्य जैनाचार्याने' भी लिखा है कि उपासका ययन नामके सप्तम अङ्गमें ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और यति इन चार पाश्रमोंका निर्देश किया गया है।।१।। यशस्तिलकमें उक्त आश्रमोंके निम्नप्रकार लक्षण निर्दिष्ट किये गये हैं: जिस पुरुषने सम्यग्ज्ञान, जीवदया-प्राणिरक्षा और कामका त्यागरूप ब्रह्म-स्त्रीसेवनादि विषयभोगका त्यागरूपमा-को भले प्रकार धारण किया है वह ब्रह्मचारी है ॥१॥ न्यावृत्तिनियताम् शूद्वान् पयामेवासृजत् सुधीः । वर्णोचनेषु शुभषा नवृत्तिनै कया स्मृता ॥८॥ मुखतोऽव्यापयन शास्त्र भरतः लक्ष्यति द्विजान् | अधोत्यध्यापम दानं प्रतीत्यज्येति तस्क्रिय!: 11 ब्राझरम तसंस्कारात क्षत्रियाः शस्त्रधारणात् । कागजोऽथामाभ्याथ्यात् शूदा न्यावृत्तिसंश्रयात् ॥१०॥ आदिपुराणे भगवजिनसेनाचार्य:--१६ वा पर्व । बहाचारो गास्थश्च वामप्रस्थश्च भितकः । इस्याश्रमास्तु जैनाना सप्तमाङ्गाद्विनिस्ताः ॥७॥ -सागारधर्मामृने । २ ज्ञानं ब्रह्म दयाना ब्रा कागविनिग्रहः । सम्यमत्र वसन्त्रात्मा ब्रह्मचारी भवेन्नरः ॥१॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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