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________________ * पि "ले are मनुष्यको तेहिक और पारलौकिक निस्सीम - सीमारहित अनन्त को इसका ज्ञान नहीं होता यह संसार में बड़े आश्चर्य की बात है। 'भोग चोरी और ल-कपट आदि अन्याय करके धनसंचय करते हुए संसारमें है उन्हें इसका परिणाम महाभयङ्कर होता है। अर्थात् इस लोक में उन्हें राजदण्ड सम्बन्धी अनंत दुःख भोगने पड़ते हैं, इस बात को बुद्धिमान पुरुष भलीभाँति को इसका ज्ञान नहीं होता इसलिये आचार्यश्रीने आश्चर्य प्रगट किया है ॥४८॥ नने भी उस बातका समर्थन किया है कि 'मुखको अन्यायको कमाईसे कविन्मात्र, उत मुख्य होता है, परन्तु ऐसी दुष्प्रवृत्ति उन्हें ऐहिक और पारलौकिक महाभयकर यह बड़ा आश्चर्य है | ॥ तिक व्यक्तिको कदापि श्रन्याय में प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिये ||४|| * हुए धर्म और अधर्मका काय और वल युनियों द्वारा समर्थन करते हैं :सुखदुःखादिभिः प्राणिनामुत्कर्षापकर्षो धर्माधयलिङ्गम् ॥४६॥ म प्रायोंकी सुखमामग्री - धनादिवैभव और विद्वत्ता आदि से उन्नति और दुःखसूना आदि से अवनति देखी जाती है, यही उन्नति और अवनति उनके पूर्व जन्म में raat करानी है— अर्थात् लोक में प्राणियोंकी सामग्री उनके पूर्वजन्मकृतमी अधर्मका निश्चय कराती है । शिवा वशि: में कोई राजा, कोई रक कोई धनाढ्य, कोई दरिद्र, कोई विद्वान और कोई मूर्ख कविताएँ (भेद) टिगोचर हो रही है. इससे निश्चय होता है कि जिस व्यक्तिने fear उसे सुप्री प्राप्त हुई और जिसने पाप किया था उसे दुःसामप्री के विद्वानने लिखा है कि 'प्राणियोंकी सुबकी वृद्धि उनके पूर्वजन्म में किये हुए धर्मका, वृद्धि पापका प्रद निश्चय कराती है || || भद्राचार्य' भी कहा है कि 'संसार में प्राणियोंकी अनेकप्रकारकी मुखदुखरूप विचित्र यदन्यायार्जनात् सुखं । विहीनं च मुः लोकद्वयं भवेन् ||१|| ******** :– उक्षः कूतं यं प्राणिनां जायते स्फुटं । या सुखदु:खस्य चिह्ननेनन् तयोः ॥ १ ॥ चित्र:कर्मानुरूपतः । — मस्तीचे स्वामी समन्तभद्राचार्यः ।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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