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________________ ३६६ नीतिवाक्यामृत नारद के उद्धरण से भी यहो थात प्रतीत होती है ॥ ॥ मूर्ख मनुष्य का हठ उमका नारा किये बिना शान्त नहीं होता । अर्थात् वह हानि होने के पश्वास ही अपनी जिद छोड़ता है ॥४३॥ जैमिनि ने भी मूर्ख की हठ उसका विनाश करने वाली बताते हुये विद्वानों को हठ न करने का उपदेश दिया है ॥१॥ • जिस प्रकार कपास में तीन आग लग जाने पर उसे बुझाने का प्रयत्न करना निष्फल है उसी प्रकार मुखे के हठ पकड़ लेनेपर उसकी हठ छानेका मान भी निष्फल है क्योकि पानी ही छा अतः ऐसे अवसर पर इसकी उपेक्षा करना हो औषधि है (इससे भाषण न करना हो उत्तम)॥४४ ॥ भागरि' ने भी मुखको हलके अवसर में विवेकी को उसकी उपेक्षा करना बताया है ।१॥ मूर्ख को हितका उपदेश उसके अनथे बढ़ाने में सहायक होता है, अतः शिष्ट पुरुष मूख के लिये उपदेश न देखें ।। ४ ।। गौतम ने भी कहा है कि जैसे २ विद्वान पुरुष मूर्ख को सन्मार्ग पर लाने का प्रयत्न करता है, वैसे २ ससकी जस्सा बनी जाती है ।। १ ।। क्रोघहती अग्निसे प्रज्वलित होने वाले मूर्योको तत्काल समझाना जलती हुई आग में घीकी माहुति बने के समान है। अथोत्-जिस प्रकार से प्रचलित अग्नि घी की आहुति देने से शान्त न होकर उल्टी बढ़ती है, उसी प्रकार मुर्ख का क्रोध भी समझानेसे शाम्त न होकर सन्टा बढ़ता चला जाता है, मसः भूखे को क्रोध के अवसर पर समझाना निरर्थक हैं ॥ ४ ॥ जिस प्रकार नथुनेर हित थैल खीचनेवाले पुरुष को अपनी भोर तेजी से वोचता जाता है, मी प्रकार मर्यावाहीन ५ हठो मुझे मनुष्य भी उपदेश देने वाले शिष पुरुष को अपनी ओर खीचता हैउससे अत्यन्त शत्रु का करने जगता है, अतः विवेकी पुरुष मूर्ख को हित का उपदेश न देखे ॥४७॥ भागुरि' के उद्धरण का भी यो अभिशय है ॥१॥ जिस प्रकार ग्याले द्वारा अधिक स्नेह किया हुआ बैल दूध नही दे सकता, उसी प्रकार स्वयं निर्गुण वस्तु पक्षपात-पश किसी के द्वारा प्रसंशा की जाने पर भी गुणयुक्त नहीं हो सकती ॥१८॥ नारद ने भी निर्गुण वस्तु के गुण-युक्त न होने के विषय में इसी प्रकार कहा है ॥१॥ इति विवाद समुदेश । या मारव:-गजस्म पोषये पाहाश: चिन्ता प्रमायते । रमप च मजेथे तारमा गाधिका भवेत् ।।. तथा मिनिः-एकामहोप भूखांयां म नरबति गिमा परतम्मादेकारहो विमें कम्पः पंचन यथा - मागुति-पासे दशमाने पुपमा धुक्तमुपेशव । एकमहपरे मूस ससम्बवविधते.." गौतमः-सपा पथा जो जोकोभियोग्यते । तथा तथा सामान तणप्रिपति॥ साभार:-मस्तपा रहितो बदनियमायोऽपि गति । यस्ता मावि पता कोपान विधि ।।। (समानारपः-स्वपमेयरम यत् तम्ब स्पारासिव शुभ। पोशलिन पीर गोपाल पवादियोm
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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