SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 389
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६५ व्यवहार समुएश Dail.rinin...... तथा धन, चावल व तगजू को जांध से होती है । एवं व्याधों से धनुष सांधने की भोर चांडाल कंजर और धमार आदि से गीने चमड़े पर चढ़ने की शपथ खिसानी चाहिये ॥ ५६, ३८ ॥ शुरु ' ने भी प्रती, व्याध व चांडालादि से इस प्रकार शपथ कराने की विधि बताई है ॥ १-३॥ चणिक वस्तुए, वेश्यात्याग, परिप्रइसे हानि, उसका दृष्टान्त द्वारा समर्थन, मूखे का आग्रह, मूसं के प्रति विवेको का कर्तव्य, मूर्ख को समझाने से सानि व निर्गुण वस्तु वेश्यामहिला, मृत्यो भएडा, क्रीणिनियोगो, नियोगिमित्र, चत्वार्यशाश्वतानि ॥ ३ ॥ क्रीतेष्वाहारेत्रिय पएयस्त्रीषु क मास्वादः॥ ४० ॥ यस्य यावानेव परिग्रहस्तस्य नावानेव सन्तापः ॥ ४१ ॥ गजे गर्दभे च राजरजकयोः सम एव चिन्ताभारः ॥ ४२ ॥ मूर्खस्याग्रहो नापायमनवाप्य निवर्तते ।। ४३ ॥ कर्पासाग्नेरिव मूर्खस्य शांताधुपेषणमौषधं ॥४॥ मूर्खस्याभ्युपपत्तिकरणमदीपनपिण्डः ॥ ४५ ॥ कोपानिप्रज्वलितेषु मूर्खेषु तरक्षणप्रशमनं धृताहुतिनिनेप इव ॥ ४६ ॥ अनस्तितोऽनड्वानिव ध्रियमाणो मूर्खः परमाकर्षति ॥४७॥ स्वयमगुण वस्तु न खलु पक्षपाताद्गुणववति न गोपालस्नेहादुक्षा क्षरति चीरम् ॥ ४८॥ अर्थ-धेश्यारूप स्त्री, अण्ड या क्रोधी नौकर, अभियन नाकारी दि इनकी सैन्नी या संसर्गचिरस्थायी नहीं है ॥ ॥ शुक' विद्वान ने भी उक्त चारों बातों को क्षणिक कहा है। १॥ जिस प्रकार बाजार से लदा हुआ भोजन सुखकारक नहीं होता, उसी प्रकार याबारूयश्याओंसे : भी सुख प्राप्त नहीं हो सकता, अत: विवेकी पुरुषों को सदा के लिये वेश्याओं का स्या करना चाहिये। शुक्र विद्वान ने भी वेश्याओं के विषय में इसी प्रकार कहा है ।। १ ॥ संसारमें जिस पुरुषके पास जितना परिग्रह (गाय भैंस, रुपया, पैसा प्रावि) होता है उसे उतनाहो संताप दुःख) होता है अर्थात् जिसके पास अधिक परिपद है उसे अधिक श्रीर जिसके पास थोड़ा परिग्रह है, उसे थोड़ा ससाप होता है ॥४१॥ नारद' ने भी परिग्रह को संतापजनक बताकर उसके त्यागने की भोर संकेत किया है ।। १॥ राजा को जैसी पिसा हाथी के पालन पोषण की रहती है, सो धोषीको गधे के पालन पोषणको 1 तथा च गुरु-तिमोऽन्ये च ये बोकासषा अधिः प्रकीर्तिता । इलेवस्य संपात विम्बर्वा शास्त्रकीर्तितः ॥॥ पुसिन्दाना विवादे क पापलंघनो भवेद | विराखि वन सेवा यस वर्ष प्रकीर्तिवा ।।१।। अन्त्यजाना सामाचारोहण । शपषः दियः प्रोको यथान्येषादिकः ॥॥ तदान शुकः-रपा पत्नी तथा भएक: सेबक इससंग्रहः ।मिनियोगिन' प र मजेद - ।। । समा शुरु-पकौतेन मोजोन बारभुक्तेन सा मवेद । सारा मन परवाः सन्तोपो आयते ॥५॥ स्या नरक-निरोप संसारे गम्मानः परिग्रहः । गन्माजस्तु समापस्वस्माचा परिमहा ।।।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy