SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विवाह-समुशि .... . .. अपनी काय प्रणाली को उचित व्यवस्था पूर्वक कार्य रूप में परिमात कर सकने की समता रखते हों, तथा पक्के राजनीतिज्ञ एवं अपने उत्तरदायित्वपर्ण राज्य-शासन-आदि कार्य भार को पूर्ण रूप से संभाज सकते हों ॥४॥ शुक्र' विद्वान के संगृहीत श्लोक का भी सभासदों के विषय में यही अभिप्राय है ॥१|| जिम राजा की सभा में लोभ व पक्षपात के कारण झूठ बोलने वाले सभासद होंगे, वे निःसम्मेह हमके मान द धन को क्षति करेंगे ॥५॥ गर्ग ने भी भिष्याभाषी सभासदों द्वारा राजकीय मान व सम्पत्ति की पति बताई है॥1॥ जिस सभा में समापति (म्यायाधोश) पक्षपाती वादी(मुद्दई) हो वहाँ वाद-विवाद करने से कोई काम नहीं, क्योंकि वाद-विवाह करने वाले सभासद व सभापति इनमें एकमत न होने से वादी की विजय कदापि नहीं हो सकती। क्योंकि अन्य लोग राजा काही पक्ष लेंगे, अतः ऐसी जगह बादी की रिजब असम्भव है ।क्योंकि क्या बहुत से बकरे मिल कर कुचे को पराजित नहीं कर सकते ? अवश्ष कर सकते हैं । अर्थात् जिम प्रकार बलिष्ठ कुत्ताभी अनेक बारो द्वार। परास्त कर दिया जाता है उसी प्रकार प्रभावशाली वादी विरोधी रामा बाधि द्वारा परिणत है ॥ शुक' ने भी कहा है कि जहां पर राजा स्वयं विरोधो हो वहां वाद-विवाद नहीं करना चाहिए, क्योंकि अन्य सभी सभासद राजा का ही पक अनुसरण करते हैं ॥१॥ वाद विवाद में पराजिसके ममण, अधम सभासद, वादविवाद में प्रमाण, प्रमाणोंकी निरर्थकसा व वेश्या और जुबारोकी बात जिस मौके पर प्रामाण्य समझी जामके-- विवादमास्थाय यः सभायां नोपतिष्ठेत,समाहृतोऽ पसरति, पूर्वोक्तेमुत्तरोक्तेन पाते,निरुचरः पूर्वोक्तेषु पुक्तेषु युक्तमुक्तं न प्रतिपद्यते, स्वदोषमनुष्कृत्य परदोषमुपालभते, यथार्थवादेऽपि वष्टि समामिति पराजितलिङ्गानि ॥७॥ छलेनाप्रतिमासेन वचनाकौशलेन चाहानिः ।। - ॥ भुक्तिः साक्षी शासन प्रमाणे ॥ ६ ॥ भुक्तिः सापवादा, साकाशाः साधिणः शासनं च कुटलिखितमिति न विवाद समापयन्ति'. अलोत्कृतमन्यायकृतं राजोपधिकृतं च न प्रमाणे ॥ ११॥ पाकितवयोरुक्त प्रहलानुसा. रितया प्रमाणयितव्यं ॥ १२ ॥ मर्थ-जो वाद विवाद करके समामें नहीं पाये; आपापूर्वक मुलाये जाने पर भो ओ सभामें उपस्थित नहीं होता, जो अपने द्वारा कहे हुए वचनोंको झूठा बनाकर-बाव बदलकर-नई बात कहता हो, १ तथा शुक्र:- म म श्रुतो पापि म्यवहारः सभासः । म ते सभ्वारबस्ते - विशेषा प्रयोपतेः॥ २ तवा र गर्ग:-अयमाप्रबस्तारः सभ्या यस्य महीपतेः । मानार्थहानिन्ति तस्म सपो न संशयः॥ बधा शुक्र:- प्रत्प पत्र भूपः स्यात् तन्त्र पार्षक कारयेत् । यो भूमिपते: परसप्रोस्सपायुगा ॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy