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________________ २८ विवाद-समुद्देश गजा का स्वरूप, उसकी समदृष्टि, विधान परिषत् के अधिकारी या सभासद, भयोग्य सभासद, व उन से हानि व न्यायाधीश की पक्षपात दृष्टि से हानि-- गुणदोषयोस्तुलादण्डसमो राजा स्वगुणदोषाभ्यां जन्तुप गौरवलायवे ॥१॥ राजा त्वपराधालिंगितानां समवर्ती तत्फलमनुभावयति ।। २ ।। आदित्पवद्ययावस्थितार्थ-प्रकाशन प्रतिभाः सम्याः॥३॥ अदृष्टाश्रतव्यवहाराः परिपन्थिनः सामिषा न सम्याः ॥ ४ ॥ लोम पक्षपाताभ्यामयथार्थवादिनः सम्याः सभापतेः सद्योमानार्थहानि लभेग्न् ॥ ५॥ तत्राल विवादेन यत्र स्वयमेव सभापतिः प्रत्यर्थीसभ्यसभापत्योरसामंजस्येन कुता जयः किं बहुभि. श्छगलैः श्वा न क्रियते ॥ ६ ॥ अर्थ-गाजाका कर्तव्य है कि प्रजाजनों के गुणों क दोषों को जांच तराजू को दरहो तरह नि भाव से करने के उपरान्त ही उन्हें गुण व दोष के कारण क्रमशः गुरु (महाम) और लघु समझे और उनके साथ योग्य-अयोग्य व्यवहार करे। अर्थात् शिष्टों का पालन व दुष्टां का निग्रह करे।॥ १॥ समस प्रजाजनों को एक नजर से देखने वाला राजा अपराधियों को अपरावानुकून दण्ड देने को सोचता है ॥२॥ गुरु ने भी अपराधी के अपराध की सत्य व झूठ जाँच करने के उपरान्त दण्ड देने को कहा है ॥१॥ राज सभा ( विधान परिषत् ) के समापद-एक्जीक्याटष कौन्सिल या पार्मिट के अधिकारी गगा (गवर्नरजनरल, प्रधानमन्त्री, गृहमन्त्री, तथा सेना अर्थ काय न्याययातायात शिवाके सविध भादि) सूर्य के समान पहाय को जैसे का तैसा प्रकाश करने वाली प्रतिभा से युक्त होने चाहिए। अर्थात् उन्हें समस्त राज्य शासन सम्बन्धी व्यवहार को यथार्थ सिद्ध करने में प्रवीण होना चाहिये ॥३॥ गुरु ने भी राजसभा के सभासद राम्पशासन सम्बन्धी समस्त व्यवहारोंके जानने वाले कहा है ॥१॥ जिन्होंने राज्यशासन सम्बन्धी व्यवहारों (शिष्ट पालन व दुध निमा प्रादि अपने २ उत्तरदायित्वपूर्ण कर्तव्यों) का शास्त्र द्वारा अनुभव प्राप्त नहीं किया हो और न राजनीतिक शिष्ट पुरुषों के सत्संग से उन व्यवहारोको श्रवण किया हो एवं जो राजा से ईष्यो वा बाव-विवार करते हों ऐसे पुरुष राजाके शत्रु हैं, वे कदापि विधान परिषन् के मेंबर (मभासद) होने लायक नहीं हैं, अब पव विधान परिषत् में सभासद के पदपर उन्हीं को नियुक्त करना चाहिये, जो राज्य-संचालन या. अपने ससर दायित्व-पूणे कर्तव्य पालन की पूर्ण योग्यता रखते हों, अनुभत्री व वाद-विवाद न करने वाले हों; , तथा च गुरु:-विजानीयात् स्वयं वाथ भूभुमा अपराधिताम् । मषा किंवाथा सत्य घराष्ट्रपरिसद्धये १॥ • तथा च गुरुः-प्रथादित्योऽपि सर्वार्थात् प्रकरणम् प्रकरोति च । तमा च म्यवहारापोन संपास्तेऽमी सभासदः ॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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