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________________ राजरका समुश ........................................................................................................... संस्काररूप जन्ममे उत्थान होकर पांच अणुव्रतों (हिमाणुनस सस्थाणुनत-श्रादि तथा ७ शीलों (दिग्बात आदि) से विभूषित होकर 'द्विजन्मा' कहलाता है ॥ १-७॥ सारांश यह है कि कुलीन दम्पति की मतान कुलीन होती है और गर्भाधान आदि संस्कारों से संस्कृत होने पर उसमें मोच-साधन सम्यग्दर्शनादि प्राप्त करनेकी योग्यता होती है। २–दम्पतियों का पारस्परिक प्रेम ३-मनः प्रसाद (दम्पवियों के हदय कमल का विकास-प्रमान चित रहना) ४-मन्द्रपलमा मावि दोष रहित गभाधान वेला (समय). लपी (मनन्त दरोन, अनंतमान, अनंत सुख अनंतबीये रूप अन्तरङ्ग लक्ष्मी व समवसरण विभूति कप बहिया समी) और सरस्वती (बादशाहतझान)का पायाइन करने वाले मन्त्रों (पीठिका मंत्रानि) से पवित्र किये हुए (वाविधि हवन पूर्वक ) उत्तर-प्राचार शास्त्र व प्रकृति ऋतुके अनुकूल-मन का भवन ॥६॥ निरोगी व दोपजीवी संतान होनेका कारण, राज्य व दीक्षा अयोग्य पुरुष, पाहीनोंको राज्याधिकारको सीमा, स्नियका प्रभाव, व अभिमानी राजकुमारोंकी हानि गर्भशर्मजन्मकर्मापत्येषु देहलाभात्मलामयोः कारखं परमम् ॥७०॥ स्वजातियोग्यसंस्कार. हीनानां राज्ये प्रव्रज्यायां व नास्त्यधिकारः ॥७१॥ मसति योम्पेऽन्यस्मिन्नाविहीनोऽपि पितृपदमर्हत्यापुत्रोत्पत्तः ॥७२॥ साधुसम्पादितो हि राजपुत्राचा विनयोऽन्वयमभ्युदयं न च दृश्यति ॥७३॥ पुणजग्धं काप्रमिवाविनीत राजपुत्र राजसमभियुक्तमात्र अज्येत् ॥७४|| अर्थ--जो स्त्री गर्भवती अवस्था में निरोगी व सुखी रहती है, उसकी मसा मी सुखी होती है एवं जिस बच्चे का जन्म शुभग्रहों में होता है, वह दोपजीवी (विरायु) होता है । गुरु' विद्वाम्ने मी संतान के निरोगी और दोर्षजीची होनेके विषयमें इसी प्रकार कहा है। अपनी जातिके योग्य गर्भाधान-श्रादि संस्कारोंसे हीन पुरुगेको समाप्ति पारण करनेका अधिकार नहीं है ०१॥ राजाके कामकाजत होबाने पर उसका पाहीम पुत्रनी उस समय अपने पिताका पद (राज्याधिकार प्राप्त कर सकता है, अपककि रस (मान)की कोई दूसरी योग्य सन्तान न होजाये ||७२ शुक' विहान का भी यही अभिप्राय ||शा जिन राजकुमारोंको शिष्ट पुरुषों द्वारा विनव-सदाचार-बादि की नैतिक शिक्षा वाई-नम सर विंगत राज्य दूषित नहीं होवा पादरायण' विद्वान् के ग्रह का भी वही मित्राव है॥शा जिसप्रकार पुष-कीदोंसे खाई बड़ी न होजाती है, इसीप्रपर दुराचारी बनवं .. मा गुरू-गर्भस्थानमपमान रवि सोम प्रसाद रिमोतो कीरिक-मावि . . बाराक-रामामा तुसंजाते योग्यः पुरोगा। रामोऽपिलायो पाप . . ज्या नादरावक:-निकः साधुभिर्वतो रामपालो भरोसारिसलपव०
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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