SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१४ नीतिवाक्यामृत धनमनुभवन्ति वेश्या न पुरुषं ॥४७॥ धनहीन कामदेवेऽपि न प्रीति बध्नन्ति वेश्याः ४॥ स पुमान् न भवति सुखी, यस्यातिशयं वेश्यासु दान H४॥ स पशाप पशः यः स्वधनेन परेषामर्थवन्तीं करोति वेश्यां ॥५०॥ भाचित्तविश्रान्ते वेश्यापरिग्रहः श्रेयान् ॥५१॥ सुचितापि वेश्या न स्वां प्रकृति परपुरुषसेवनलक्षणां त्यजति ॥५२॥ अर्थ-जब विवेक-हीन पुरुष वेश्याओंको प्रचुर धन देकर भी उनका सुपभोग करता हुधा अधिक समय बक सुस्थी नही होपात, सब थोरासा धन मेधाज्ञा कैसे सुखो होमकता है। नहीं होसकता। बिना कारण छोड़ी हुई वेश्याओंके यहाँ पुन: जानेसे वे ग्यमनीका महान् अनर्थ (पाणपाठ) कर रामवी है वेश्यागामी पुरुष अपने प्राण-धन और मानमर्यादाको खोथैठते हैं ।।४४-४६॥ नारद' ने भी वेश्यासकको अपने प्राण म धनका नाशक कहा है ।।१।। वेश्याए केवल म्यसनी पुरुष द्वारा दिये हुए धनका ही उपभोग करती है, पुरुषका नहीं; क्योंकि निर्धन व्यक्ति ६४ कलाओंका पारगामी (महाविद्वान् ) व कामदेव सदृश अत्यन्त रूपवान भी क्यों न हो, उसे के तत्काल ठुकरा देती हैं, जबकि कुन-आदि भयानक व्याधियोंसे पीडित व कुरूप धनाढय व्यक्तिले अनुराग करती है ॥४७॥ भारद्वाज ' विहानके उद्धरण का भी यही अभिप्राय है ॥१॥ वेश्याणे कामदेव समान अत्यन्त रूपवान पर दरिद्र व्यक्ति से कभी भी अनुराग नही करती तो फिर भला कुरूप व दरिद्र व्यक्तिसे फेसे प्रेम कर सकती है ? नहीं कर सकतीं ॥४॥ भागुरि' विद्वान्ने भी वेश्याओं के विषय में इसी प्रकार कहा है ॥१॥ वेश्याओमें आसक्त पुरुष उन्हें प्रचुर धन देने पर भी कभी सुखी नहीं हो ममता जो मूर्स के श्याको अपना प्रचुर धन देता है वह दूसरों को भी धन देनेके लिये प्रोत्साहित कर उसे और भी धनाच बनाता है, वह पशुसे भी पढकर पशु है, क्योंकि वह अपने साथ साथ दूसरोंकी मी आर्थिक पति कावा है 4-५॥ बल्लभदेव ' विद्वानने भी वेश्यासककी इसी प्रकार कड़ी प्राखोपना की है ॥१॥ विजिगीषु अपने चिरा को शान्ति पर्यन्त (श-विजन पर्यन्त) गुप्तचर-मादिक कार्या परवासंद करे, इससे वह शत्रत उपद्रवोंसे पंश को सुरक्षित करता है ॥५॥ . साप नारदः-प्राकाहानिरेष स्याडेश्वार्या प्रतिको नृवाम् । परमातस्यास्परित्याग्या वेरणा पुमिग विभिः॥॥ १ तथा व भारद्वाज:--- सेवभो नर वेरपाः सेवन केस धनम् । धमहीनं यतो मत्वं संत्वमसि - उत्तवान् ॥१॥ । तपा च भागुरिः-- सेम्पते बीनः कामदेवोऽपि चेतास्वर्ष । मेरमामिर्चगाम्बामिः श्री चापि निम ॥॥ ४ सपा पखामदेवः-प्रारमदितव को मेरा महा रुने कुधीः । सम्पाविसमाचारपाना पाह सर्वका ॥१॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy