SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 337
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 100... .. राजरक्षा समुहेश ............ जनयति ॥४२॥ नातीच स्त्रिया व्युत्पादनीयाः स्वभावसुभगोऽपि शास्त्रोपदेशः स्त्रीषु, शस्त्रीप पयोलप इव विषमता प्रतिपद्यते ।।४।। अर्थ-स्त्रियोंको सम्मान-पालन, गृहकार्य, शरीर-संस्कार और पतिके साथ शयन इन चार पानां में स्वतन्त्रता देनी चाहिये, दूसर कायों में नहीं ॥३६॥ भागरि' विद्वान् ने भी उक्त चार बातोंमें स्त्रियोंको स्वतन्त्र रखने को कहा है ।।६ अपकि कामी लोग स्त्रियों में अत्यधिक आसक्त होनेके कारण उन्हें सभी कार्यों में स्वतन्त्रता दे देते हैं, वो वे स्वच्छन्द होकर पति के हृदयको उसी प्रकार कष्टीने विदीर्ण किये बिना नहीं रहती जैसे कि हत्यमें प्रविष्ट हुई सलबार उसे वेध करही बाहर निकला करतो है ॥४०॥ जिस प्रकार नदोके प्रवाह में पड़ा था वृक्ष चिरकाल तक अपनी वृद्धि नहीं कर पाता, बल्कि नष्ट हो जाता है, इसीप्रकार श्रीके परामें रहनेवाजा पुरुष भी माथिक क्षति द्वारा नष्ट हो जाता है, अतः स्त्रियों के अधीन नहीं रहना चाहिये ॥४१॥ शुक* विद्वान ने भी स्त्रियोंके अधीन रहने का निषेध किया है ॥१॥ जितप्रकार मुष्टीमें धारण की हुई वङ्गाष्टि-तलवार-विजिगीषका मनोरथ (विजय-सामादि) पूर्ण करती है, इसीप्रकार पुरुषकी प्रामानुकूल चलने वाली (पतिव्रता) स्त्री भी अपने पतिका मनोरम पर करती है ॥४२॥ किसी विद्वान् ने भी पतिव्रता स्त्रोको पतिका मनोरथ पूर्ण करने वाली कहा है ॥१॥ नैतिक पुरुष स्त्रियों को कामशास्त्रकी शिक्षामें प्रवीण न बनावे, क्योंकि स्वभाव से उत्तम कामशास्त्रका ज्ञान स्त्रियोंको खुरीमें पड़े हुए पानीकी व समान नष्ट कर देता है। अर्थात जिप्सप्रकार पानी की दछुरी पर पड़नेसे एकदम नह होजाती है, उसीमकार कामशास्त्र की शिक्षा भी स्त्रियों को कुन-धर्मचारित्रधर्म से गिराकर नष्ट भष्ट कर देती है, अतः स्त्रियों को कामशास्त्र की शिक्षा छोड़कर अन्य लौकिक व धार्मिक शिक्षा देनी चाहिये ॥४३।। भाराज विहान ने भी स्त्रियों को कामशास्त्री शिक्षा देनेका निषेध किया है। वेश्यागमन के दुम्परिणाममधु येणाधिकेनाप्यर्थेन घेश्यामनुभवन्पुरुषो न पिरमनुभवनि सुखम् ॥४४॥ विसर्जना. कारयाम्पा तदनुमचे महाननः ॥४५॥ वेश्यासक्तिः प्राणार्थहानि कस्य न करोति ॥४६॥ या मागुरि-मास'चे माहित नाहीशा मुक्त्वा कर्मचतुष्टयम् । बाथाना पोषरा को शयन कागभूषवं ॥१॥ याच गुरु:-गरि विमानोति का स्त्रीची बागो मवेत् । महोबाइपतितो पचा भूमिसमुषः ।।१।। या मोक्वं—पा मारी बागा पत्युः पतिप्रतपरायवर । सा स्पस्युः करोत्येष मनोराज्य दि स्थितम् ॥३॥ • वयर - भारद्वाज कामशास्तत्वशाः स्त्रियः कार्याः कुलोद्धवाः। यतो स्प्यमायान्ति बया कर
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy