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________________ ३११ राजरक्षा समुद्देश 1555-44444444 241-444444 वेश्या सेवनका त्याग, स्त्रियोंके गृहमें प्रविष्ट होने का निषेध व उनके विषय में राज कर्तव्यभोजनवत्सर्व समानाः पण्याङ्गनाः कस्तासु हर्षमष पोरवसरः ||२८|| यथाकामं कामिनीनां संग्रह: पश्मनी वानक न्यायावहः प्रक्रमोऽदौवारिकं द्वारि को नाम न प्रविशति ॥ २६ ॥ मातृयजनविशुद्धा राजवसत्युपरिस्थायिन्यः स्त्रियः संभवतव्याः ||३०|| दर्दुरस्य सर्पगृहप्रवेश इष स्त्रीगृहप्रवेशो गज्ञः ||३१|| न हि स्त्री गृहादायात किंचित्स्वयमनुभवनीयम् ||३२|| नापि स्वयमनभवनीयेष स्त्रियो नियोक्तव्याः ||३३|| अर्थ --- वेश्याएं बाजार के भोजन की तरह सर्वसाधारण होती है, इसलिये कौन नैतिक पुरुष उन्हें देखकर सन्तुष्ट होगा ? कोई नहीं ||२८|| विजिगीषु राजा अभिलषित स्वार्थसिद्धि ( शत्रुओंसे विजययादि) के लिये वेश्याओंका संग्रह करता है, परन्तु उसका ये कार्य निरबैंक और कल्याणनाशक है। क्योंकि जिसप्रकार द्वारपाल - शून्य दरवाजे में सभी प्रविष्ट होते हैं, उसीप्रकार सर्वसाधारणद्वारा भोगी जाने बाकी वेश्याओंके यहां भी सभी प्रविष्ट होते हैं, इसलिये वे शत्रुपक्ष में मिलकर विजिगोषुको मार डालती हैं। tara शत्रु-विजय अन्य उपाय ( सामादि) द्वारा करनी चाहिए; न कि वेश्याओंके द्वारा ||२६|| विजिगीष शत्रु- विजय आदि आवश्यक प्रयोजनवश मातृपक्षसे विशुद्ध (व्यभिचार शून्य ) व राजद्वार पर निवास करने वाली वेश्याओं का संग्रह करे ||३०|| जिसप्रकार सौंपकी वामीमें प्रविष्ट हुआ मेंढक नष्ट होजाता है; सीप्रकार जो राजा लोग स्त्रियोंके गृहमें प्रविष्ट होते हैं, वे अपने प्राणों को खो बैठते हैं, क्योंकि स्त्रियाँ पंच प्रकृति वश शत्रु पक्ष से मिलकर इसे मार डालती हैं या मरवा देती हैं ||३१|| गौतम' विद्वान् ने भी राजाको स्त्री- गृहमें प्रविष्ट होनेका निषेध किया है ॥२॥ राजा अपने प्राणोंकी रक्षा के लिये स्त्रियोंके गृहसे आई हुई कोई भी वस्तु भक्षण न करे ||३२|| बादरायण ने भी इसी धातकी पुष्टि की है ॥१॥ राजा स्वयं भक्षण करने योग्य भोजनादि के कार्य में स्त्रियों को नियुक्त न करें, क्योंकि वे पंचा वश अनर्थ कर डालती है ||३३|| 3 भृगु विज्ञान का भी इस विषय में यहो अभिप्राय है ||३३|| स्वेच्छाचारिणी स्त्रियोंके अनर्थ, दुष्ट स्त्रियोंका घृणित इतिहास, व स्त्रियों का माहात्म्यसंवननं स्वातंत्र्यं चाभिलषन्स्यः स्त्रियः किं नाम न कुर्यन्ति ||३४|| भूयते हि किसआत्मनः स्वच्छन्दवृत्तिमिच्छन्ती विषविदूषितगण्डूषेय मणिकुण्डला महादेवी यवनेषु १ सालमा प्रविशे हि यथा को विसर्पस्य मृत्युमा । तथा संजायते राजा प्रभो वेश्मनि स्विचः ॥४१॥ २ तथा बारावा - स्त्रीयां गृहात् समायातं मदीय' न भूभुजा । किंचित्स्यश्पमपि प्राणान् रचितुं योऽमिचा 1312 ३ तथा च सुगुः -- भोजमादिषु सर्वेषु आत्मीयेषु नियोजये। स्त्रियो भूमिपतिः सारयन्ति श्रवश्यः ॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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