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________________ ३१० नीतिमाक्यामृत उपभोग न करने वाले मनुष्य के लिये भी स्त्री निरर्थक है, क्योंकि उससे उसका कोई इष्टप्रयोजन (धार्मिक सन्सान-मादि) सिद्ध नहीं होता ॥२३|| स्त्रियों के प्रतिकूल होने के कारण, समको प्रकृत्ति, दूतापन रक्षाका ६श्यसपत्नीविधानं पत्युरसमंजसं च विमाननमपत्याभावश्च चिरविरहश्च स्त्रीणां विरक्तकारपानि ॥२४॥ न स्त्रीणां सहजो गुणो दोषो वास्ति किंतु नद्यः समुद्रमिव याहरां पतिमाप्नुवन्ति तादृश्यो भवन्ति स्त्रियः ।।२५।। स्त्रीणां दौत्यं स्त्रिय एव कुयु स्वैररचोऽपि पुयोगः स्त्रियं पयति किं पुननिव्यः ॥२६॥ वंशविशुद्ध्यर्थमनर्थपरिहारार्थ स्त्रियो रक्यन्से न भोगार्थ ॥२७॥ अर्थ-निम्नलिखित बातोंसे स्त्रियाँ अपने पतिसे विरक्त (प्रतिकूल) होजाती हैं सपत्नीविधान (पतिद्वारा सौतका रखना), पतिका मनोमालिन्य (मुर्गा वध-दि) अपमान, अपत्याभाष सन्तान का प्रभाव ) व चिरविरह (पति का चिराल तक विदेश में रहना) अतः नैतिक पुरुष स्त्रियोंको अनुकूल रखने के लिये उक्त पांचों बातोंका त्याग करे ॥२४॥ जैमिनि विद्वान्ने भी स्त्रियों की प्रतिकूलता के विषय में यही कहा है ॥१॥ स्त्रियों में स्वाभाविक गुण या दोष नहीं होते। किंतु उनमें समुदमें प्रविष्ट हुए नदी के समान पविके गुणोंसे गुण या दोषोंसे दोष उत्पन्न हो जाते हैं। जिस प्रकार नदियां समुइ मिनेसे बारी होजाती है, उसी प्रकार स्त्रियाँ पतिके गुणोंसे गुणवती और दोषोंसे दोष-युक्त होजाती है ।।२।। शुक र विद्वान्ने भी स्त्रियों के गुण व दोपके विषयमें इसीप्रकार कहा है ।।शा स्त्रियोंको सन्देश लेजानेका कार्य दूसनी स्त्रियों द्वारा ही करना चाहिये, पुरुषोंसे नहीं, क्योंकि जब पशुजातिका पुरुष भी उन्हें दूषित कर देता है तब फिर मनुष्योंसे दूषित होने में कोई विषेषता नहीं पा॥ गुरु' विद्वामने भी स्त्रियों के दूतीपन के विषयमें इसी प्रकार कहा है ॥१॥ नैतिक मनुष्य अपनी वंश-विद्धि और अनर्थोसे बचने के लिये स्त्रियोंकी रक्षा करते हैं, केरल विषय-वासना की नक्षिके लिये नहीं ॥२७॥ गुरु' विद्वान का भी यही अभिप्राय है ।।। , तदा चोमिनिः-सपरमी वा समानत्वमपमानमानपत्पता । देशाम्तरगतिः परपुः स्त्री राग हस्पी १ तथा शुभ-गृहो या अदि वा छोपो न स्त्रीया सहजो भवेत् । भतु: सध्या याति समस्याषगा यथा ।।१।। । तथा च गुरु:-स्त्रीचा दोत्म मरेन्द्रमा प्रप्या नायर्यो नरो न था। ति योऽपि च पुयोगोटो दूषपति स्त्रियम् ॥1॥ ४ तथा च गुरु:-शस्य र विगुभ्यर्थ तथानमाय । रचितम्याः स्त्रियो विजनं भोगाय व केवलम ॥१॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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