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नीतिवाक्यामृत
(आई-वगैरह ) हो अथवा वैवाहिक सम्बन्धसे बंधा हुआ-साला वगैरह हो, और वह नीतिशास्त्र का बेता राजा से अनुराग रखनेवाला और राजकीय कर्तव्यों में कुशल हो ||२||
10- 100.0
गुरु' विद्वान ने भी राजाकी शरीर रक्षार्थ यही कहा है || १||
राजा, विदेशी पुरुष को, जिसे धन व मान देकर सम्मानित न किया गया हो और पूर्व में सजा पाये हुए स्वदेशवासी व्यक्तिको जो कि बाद में अधिकारी बनाया गया हो, अपनी रक्षार्थ नियुक्त न करे; क्योंकि सन्मानित व दण्डित व्यक्ति द्वेषयुक्त होकर उससे बदला लेनेकी कुचेष्टा करेगा ||३|| शुक्र विद्वान् के संग्रहीत श्लोकों का भी यही अभिप्राय है ॥१-२॥
२
चिकृत – दुष्ट -- चित्तवाला पापीपुरुष कौन से अनथों में प्रवृत्ति नहीं करता ? अर्थात् सभी में प्रवृत्ति करता है, अत्यन्त स्नेहमयी माता भी विकृत-द्वेषयुक्त हो जाने पर क्या राक्षसी ( हत्यारो) नहीं होती ? अवश्य होती है
शुक्र * विद्वान् ने भी विकृत चित्र वाले पुरुषके विषय में इसीप्रकार कहा है || श
स्वामीसं रहित श्रमात्य आदिकी हानि, आयु- शून्य पुरुष, राज- कर्तव्य ( श्रात्मरक्षा) व स्त्रीसुखार्थ प्रवृत्ति व जिसका धन-संग्रह निष्फल है:
अस्वामिकाः प्रकृतयः समृद्धा अपि निस्तरीतु न शक्नुवन्ति || ५|| देहिनि गतायुषि सकलांगे किं करोति धन्वन्तरिरपि वैद्यः || ६ || राज्ञस्तावदासन्ना स्त्रिय आसन्नतरा दायादा आसन्नतमाश्च पुत्रास्ततो राज्ञः प्रथमं स्त्रम्य रक्षणं ततो दायादेभ्यस्ततः पुत्रेभ्यः ||७|| आवष्ठादा चक्रवर्तिनः सर्वोऽपि स्त्रीमुखाय क्लिश्यति ||८|| निवृतस्त्रीसंगस्य घनपरिग्रहो मण्डनम || ||
अर्थ:- प्रकृतिवर्ग (मंत्री व सेनापति आदि राजकर्मचारी) समृद्धिशाली होकर के भी जब राजा से रहित होते हैं, तब आपति को पार नहीं कर सकते – शत्रुओं द्वारा होनेवाले संकटोंसे राष्ट्र का बचाव नहीं कर सकते ||५||
वशिष्ठ विज्ञामने भी उक्त बात का समर्थन किया है ॥ १ ॥
जिसकी आयु बाकी नहीं है, वह सकल अङ्गोपांगों, या ७२ कथाओं से युक्त होने पर भी धन्य
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मीच गुरुः वंश च सुसम्बन्ध शिक्षित रामसंयुतं । कृतकर्म जनं शर्खे रचायें धारयेन्नृपः ॥ १॥
२ तथा शुक्र-नियोगिनः समीपस्थं दंडविया न धारयेत् । प्रयढको बरे न वित्तस्य बाधा विशस्य जायते ५१|| अन्यदेवं लोक-समीपस्थं न धारयेत्। अपूति स्वद ेशी वा विरुद्ध्य प्रपूजित ||२|| ३ तथा शुक्रः – यस्य चि विकारः स्यात् सर्वे पापं करोति सः । जात इन्ति सुखं भाषा ग्रामि मार्गमाश्रिता ॥१॥
४ तदा च बहिः राजप्रकृतयो ने स्वामिना रहिताः सदा । गन्तु ं निर्वाह यहूद स्त्रियः कान्तविवर्जिताः ||१||