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नीतिवाक्यामृत
नारद' विद्वान् ने भी संकटमें सहायता करना आदि मित्रके गुण बताये हैं |
मित्र द्वारा धनादि प्राप्त होने पर स्नेह करना, स्वार्थ सिद्धिमें लीन रहना, विपचिकालमें सहायता न करना, मिश्रके शत्रुओंसे जा मिलना, छल-कपट और धोखेबाजी से युक्त ऊपरी नम्रता प्रदर्शित करना और मित्रके गुणोंकी प्रशंसा न करना, ये मिश्रके दोष हैं ||६||
रैभ्य विद्वान् ने भी इसी प्रकार मिश्र के दोष प्रगट किये हैं ||१||
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मित्रकी स्त्री पर कुदृष्टि रखना, मिश्र से वाद-विवाद करना, सदा उससे धनादि मांगना, पर अपना कभी न देना, आपसमें लेन-देनका सम्बन्ध रखना, मित्रको निन्दा व चुगली करना, इन बातोंसे मित्रता भंग ( नष्ट हो जाती है ॥७॥
शुक* विद्वानने भी मित्रता- नाशक यही कार्य बताये हैं ||१||
पानीका दूधको छोड़कर दूसरा कोई पदार्थ उत्तम मित्र नहीं, क्योंकि वह अपनी संगतिमात्रसे पानीको अपने समान गुग-युक्त बना देता है। उसी प्रकार मनुष्यको ऐसे उत्तम पुरुषकी संगति करनी चाहिये जो उसे अपने समान गुणयुक्त बना सके ||८||
गौतम विज्ञान का भी यही अभिप्राय है || १||
मैत्रीकी आदर्श परीक्षा, प्रत्युपकारकी दुर्लभता व दृष्टान्त द्वारा समर्थन
न नीरास्परं मद्ददस्ति यन्मिलितमेव संवर्धयति रचति च स्वक्ष्येण श्रीरम् ||६|| येन केनाप्यपकारण तिर्यचोऽपि प्रत्युपकारिणोऽव्यभिचारिणश्च न पुनः प्रायेण मनुष्याः ॥ १० ॥ तथा चोपाख्यानकं श्रटव्यां किलान्धकूपे पतितेषु कपिसर्पसिंहापशालिक सौवर्णिकेषु कृतोपकारः कंकायननामा कश्चित्पान्थो विशालायां पुरि तस्मादचशालिकाच्यापादनमवाप eratives गोतमादिति ॥११॥
अर्थ - प्रश्नीको छोड़कर दूसरा कोई पदार्थ दूधका सच्चा मित्र नहीं, जो मिलने मात्र से ही उसकी वृद्धि कर देता है और अग्निपरीक्षा के समय अपना नाश करके भी दूधकी रक्षा करता है ॥६॥
भागुरि विद्वान्ने भी पानीको दूधका सच्चा मित्र बताया है ॥१॥
संसार में पशुगणभो उपकारीके प्रति कृतन व विरुद्ध न चलनेवाले होते हैं, न कि कृतघ्न पर
1 तथा च नारदः - आपत्काले च सम्माने कार्ये च महति स्थिते । कोपे प्रसादनं नेच्लेम्मिनंस्मेति गुणाः स्मृताः ॥१॥
२ तथा चभ्यः --दानस्नेहो निजार्थत्वमुपेक्षा व्यसनेषु च । चैरिसंगो प्रशंसा च मित्रदोषाः प्रकीर्तिताः ॥७१॥
३. ४ तथा
शुक्रः स्त्रीसंगतिदिधादोऽय सार्थित्ममदागता । स्वसम्बन्धस्तचा निन्दा पैशुन्य मित्रमेरिया 1 गौतमः --होनोऽपि चेत्संगं करोति गुणिमिः सह । गथवान् मन्यते खोकेंदु वाढ्य कं समाः ॥१२॥