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________________ दुर्ग समुद्देश २६१ शुक्र' विद्वान ने कहा है कि जिसमें एक द्वार से वस्तु-प्रवेश और दूसरे से निकासी न हो, वह दुर्गे नहीं जेलखाना है ॥१॥ दुर्गविहीन देश किसके पराजय का स्थान नही ? सभी के पराजय का स्थान है ॥४|आपतिकालमें-शत्रुत आक्रमणों के समय दुर्गशून्य राजाका समुद्र के मध्य में नौका से गिरे हुए पीके समान कोई रतफ नहीं। अर्थात् जिस प्रकार नौका से समुत्र में गिरे हुए पक्षी का कोई रक्षक नहीं, उसी प्रकार शत्रु कत माक्रमण द्वारा संकट में फंसे हुए वर्ग-शून्य राजा का भी कोई रक्षक नहीं है || शुक्र विद्वान ने भी दुर्ग-शून्य राजा के विषय में इसी प्रकार कहा है ॥१॥ शत्र, के दुर्ग को नष्ट करने का उपाय, दुर्ग के विषय में राज कर्तव्य व ऐतिहासिक दृष्टान्तउपायतोऽधिगमनमुपजापश्चिरानुवन्धोऽत्रस्कन्दतीक्ष्णपुरुषोपयोगश्चेति परदुर्गलभोपायाः।।६।। नामुद्रहस्तोऽशोधितो वा दुर्गमध्ये कश्चित् प्रविशेभिर्यच्छेद्वा ।।७।। श्रूयते किल हूणाधिपतिः पष्यपुटवाहिभिः सुभटैः चित्रकूट जग्राह ॥८॥ खेटखङ्गधरैः सेवार्थ शत्र णा भद्रारूप कांचीपतिमिति अथे-विजिगीषु को शत्र दुर्ग का नाश या उसपर अपना अधिकार करने के लिये निम्नप्रकार पाय काम में लाने चाहिये। १--अधिगमन-सामादि उपायपूर्वक शत्रदुर्ग पर शस्त्रादि से सुसज्जित सैन्य प्रषिष्ट करना ।२उपजाप-विविध उपाय (सामादि) द्वारा शास्त्र के अमात्य आदि अधिकारियों में भेद करके शत्र के प्रतिद्वन्दी पनाना।३-चिरानबन्ध-रात्र के दुर्ग पर सैनिकों का चिरकालतक घेरा डानना। ४-अयस्कन्द-शत्र दुर्ग के अधिकारियों को प्रचुर सम्पत्ति और मान देकर पश करना । ५-तीक्ष्णपुरुषप्रयोग-मातक गुप्तचरों को, शत्र राजा के पास भेजना |६|| शुक विद्वान ने कहा है कि विजिगीषु शत्र वर्ग को केवल युद्ध द्वारा ही नष्ट नहीं कर सकता, अतएव उसे उसके अधिकारियों में भेद आदि उपायों का प्रयोग करना चाहिये १।। दुर्ग में स्थित केवल एक धनुघोरी सैकड़ों शक्तिशाली शत्रों को अपने वादों का निशान बना सकता है, इसलिये दुर्ग में रहकर युद्ध किया जाता है। तथा शुभ-निगमः प्रकारचा दुर्ग प्रविद्यते । अम्पद्वारेच परत मान दुर्ग पदि गुम्सिद | २ प्यार शुकः-दुर्गम रहियो राजा पोतमसो पचा बराः । समुद्रमध्ये स्थान न समते गरेप सः | * 'सेट-सहावरच भद्रः कांचीपतिमिति' इसप्रकार का पाठान्तम प्रतियों में पर्वमान है, जिसका अपह कि भन्न नामक राजा ने मापारी सैनिकोको शिकार्मयों के मेष में काली देश के दुर्ग में महिमाकर पहा के परेश को मार गया। ३षा - शुका-पुन प्रशस्वं ला पापुगेन । मुल्ला मेवाकु गाय स्माताल नियोने ॥१॥ शबनेकोअपि सम्बचे प्रास्मो अनुभः । परेषामपि पोचाय स्माद् हुन पुष्यते ॥२॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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