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________________ हैं नीतिवाक्यामृत * - जो लोग अहिसाधर्मक माहात्यम लोकमें सुखसामग्री का उपभोग करते हैं तथापि ये उससे और त में यह उनका बड़ा अज्ञान है। क्योंकि कौन बुद्धिमान पुरुष इञ्छित वस्तुको देनेवाले कल्पवृत्तसे करता है ? अर्थान नहीं करता ।। यदि बुद्धिमान पुरुष दोडामा कलेश उठाकर अपने लिये अच्छी तरह सुखी देखना चाहता है वो सस यो कि जिस प्रकारफे व्यवहार (मारना विश्वासघात करना प्रावि) वह अपने लिये बुरा समझता से ज्यबहार दूसरों के साथ न कर ।।३।। जा विक्की पुरुष दुमरीका उपधान (हिसा) न करके अपनी सुखसामग्रीका उपभोग करना पाहता इस लोकमें सुख भोगता हुआ जन्मान्तरमें भी मुखी होता है ।।शा . .. . जिस प्रकार समस्त प्राणायाको अपना जीवन प्यारा है उसी प्रकार दूसरोंको भी अपना जीवन प्यारा । बुद्धिमान एरुषको जीवहिसा छोड़ देनी चाहिये ॥५॥ पुद्धिमान पुरुष शराबी और मामभदी मनुष्यों के गृहोंमें भोजन और पान न करे एवं उसके साथ मनसा (सलाह) भी न कर ॥३॥ जो मनुष्य अप्रतियां-(मांस आदिफा त्याग न करने वाले) से भोजनादि कार्योमें संसर्ग रखता है अमकी इसलोकमें निन्दा होती है और परलोक में भी उसे फटुफल भागने पड़ते हैं। . प्रती पुरणको मशक वगैरह चमड़ेकी चीजों में रक्खाहुआ पानी, चमड़ेकी कुप्पियों में रक्या हुआ धी और तहका भी उपयोग करना सदाके लिये छोड़ देना चाहिये । एवं वह अवती कन्या नोंसे विवाह प्रादि मंसर्ग न करे ।।८।। . प्रात्मकल्याणके इछुक मनुष्योंको बौद्ध,सांख्य और चार्वाक आदिकी युनिशम्य मान्यता पर ध्यान नते हुए सदाफे लिये मांसभक्षणका त्याग करना चाहिये निरषयसे एक प्रमच्छ जोकि स्वयंभूरमण नामके समुद्र में महामन्छके कर्णविलमें उत्पन्न हुमा था बह मांसभक्षण रूप प्रातभ्यानसे नरकमें उत्पन्न हुआ। अंग मधु और पाँच नम्बर फर्लोका त्याग बताते हैं:" .. सनन पुरुष, गर्भाशयमें स्थित शुक्ल और शोणितके सम्मिश्रणके तुल्य मालिकाले मधुको, जो कि शारकी मल्सियों तथा उनके छोटे-छोटे बचोंके घातसे उत्पन्न होता हैकिस प्रकार सेवन करते हैं ? नहीं कामकते ॥१॥ जिमके मध्यभागमें छोटे-छोटे मक्खियोंके बच्चे भिनभिना रहे हैं ऐसे शहदके छत्तेमें वर्तमान मक्खिायो भएटोंके खंडोंसे युक्त मधु बद्देलियों और चिड़ीमारोंके लिये प्राणों के समान प्रिय कैसे हो गया। यह मारपर्यकी बात है ।। पीचन, गूलर, पाकर, 4 और ऊमर इन पांच उनम्बर फोमें स्थूल अस जीव उपते हुए दिखाई . .- .... --- यानक यशस्तिलक से जानमा बाहिये। २.सोशस्तिला
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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