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________________ * नीतिवाक्यामृत er Harrant कथन किया जाता है. ·" हिंसादि पापोंसे निवृत होना सम्यक्चारित्र है उसके भेद हैं। (१) एकदेश (अणु) (२) सर्वदेश (महान) प्रकृत के एकदेशचारित्रका निरूपण करते हैं : श्रावकका एकदेशन्यारत्र दो प्रकारका है :- (१) मूलगुण (२) उन्नरगुण । मूलगुगा होते हैं। ar (शराब), मांस और मधुका त्याग तथा पांच नम्बर फलके भक्षणका त्याग करना ये शास्त्रों गृहस्थों के मूलगुण कहे गये हैं |१|| अत्र त्यागका विवेचन करते हैं : मण पीने से शराबी के समस्त काम और कोधादि दोष उत्पन्न होते हैं और उसकी बुद्धि पर अज्ञानका पापड़ जाता है एवं यह मद्यपान समस्त पापोंमें अमर-प्रधान है ॥२॥ इससे हित और अहितका विवेक नष्ट होजाता है इसलिये शराबी लोग मंमार की जंगल में भटकाने बाले कौन-कौन से पाप नहीं करते ? अर्थात् सभी प्रकारके पाप करते हैं ||३|| शराब पीने से यदुवंशी राजा लोग और जुआ खेलने पांडव लोग नए हुए यह कथानक मन्त लोक में प्रसिद्ध है ||श्री महुआ, गुड़ और पानी के मिश्रण से बनाई हुई शराब में निश्चयसे अनेक जीव उत्पन्न होते हैं और होते रहते हैं तथा शरारूप होजाते हैं। पश्चान वह शराब समय कर शराबियोंके मनको मुद्रित कर देती है ||५|| शराबकी एक बिन्दुमें इतनी जीवराशि वर्तमान है कि यदि उसके जीय स्थूल होकर संचार करने स्वर्गे तो निस्सन्देह समस्त लोकको पूर्ण कर सकते हैं ||६|| पान शराबीके मनको मूर्च्छित करना है और दुर्गनिका कारण है इसलिये सजन पुरुषको इसका सदैव त्याग कर देना चाहिये ||७|| अब दूसरा मूलगुण (मांसत्याग) का कथन करते हैं: सजन पुरुष स्वभावसे अपवित्र दुर्गन्धित प्राणिहिंसायुक्त और दुर्गति कार मांगी किम प्रकार भक्षण कर सकते हैं ? नहीं कर सकते ||२॥ ● संग्रहीत से | जिसका मांस मैं यहाँ खाता हूँ वह मुझे भी जन्मान्तर में अवश्य ही जागा "हंसा मांस शब्दका अर्थ विद्वानोंने कहा है' ||१||
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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