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संस्कृत टीकाकार राजनैतिक विषय का प्रकाण्ड व बहुश्रुत विद्वान था, क्योंकि उसने सोमदेव सूरि के प्रायः सभी सिद्धान्त भारताय व प्राचीन नांतिकारों के उद्धरणों द्वारा अभिव्यक्त किये हैं, परन्तु आर्हद्दर्शन से संबधि कतिपय विषयों का उसने भ्रान्त अर्ध किया है और कतिपय | विषयों में तो स्वरूचि से नये सूत्र रचकर मूलग्रन्थ में घुसेड़ने की निरर्थक चेष्ठा की है। जैसे विद्यावृद्ध समुद्देश के 22 से 24 व 26 वां सूत्र । इनमें महस्थ वानप्रस्थ व यत्तियों के ! भेद व लक्षण किये है, जिग्न अहद्दर्शन से समन्वय नहीं होता । उक्त सूत्र किसी भी मु. व ह, लि. मूल प्रतियों में नहीं पाये जाते, प्रत्युत ग्रन्थकार ने यशस्तिलक चम्पू में उनका निरसन (खंडन) भी किया है, जिसका टिप्पणी में उल्लेख है । इस ग्रन्थ में सभी नैतिक विषयों का विवेचन है, केवल धर्म का ही नहीं, अत: पाठकवृन्द इसका मधुर अमृतपान नैतिक दृष्टिकोण से करते हुए अनुगृहीत करें ।
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प्रकृत श्रुत-सेवा का सत्कार्य निम्नलिखित सज्जनों के साहाय्य से सुसम्पन्न हुआ है, अत: उनके प्रति हम कृतज्ञता एवं आभार प्रदर्शन करते हैं । श्रीमान् पूज्य गुरुवर्य्य 105 श्री क्षुल्लक गणेशप्रसाद जी वर्णी न्यायाचार्य, श्री के. भूजबली, शास्त्री, आरा, पूना गवर्न. लायब्रेरी के प्रबन्धक व वहाँ से प्रति मंगाने में सहयोग देने वाले श्री बा. नेमिचन्द्र जी वकील तथा श्री बा. विशालचन्द्रजी बी. ए. एल एल. बी. ऑनरेरी मजिस्ट्रेट सहारनपुर , पत्र द्वारा अनुवाद | की सामग्री प्रदर्शन करने वाले श्री. श्रद्धेय. प. नाथुरामजी प्रेमी बम्बई, श्री ला, बाबूराम जी दिल्ली, उचित सलाह देने वाले पं. श्री दरबारीलालजी न्यायाचार्य दिल्ली, श्री पं. चन्द्रमौलिजी शास्त्री प्रचारक अनाथाश्रम दिल्ली. श्री पं. पन्नालालजी साहित्याचार्य सागर, श्री प्रूत राजेन्द्रकुमार | जी शास्त्री न्यायतीर्थ महामन्त्री दि. जैन संघ मधुरा, मेरी अनुपस्थिति में प्रूफ संशोधन करने वाले व उसमें सहयोग देने वाले श्री पं. अजितकुमार जी शास्त्री, दिल्ली एवं वणी संघ को दिल्ली लाने वाले, शास्त्र मर्मज्ञ व विद्वानों के प्रति सहानुभूति रखने वाले एवं हमें बहुत साय तक स्थान आदि की सुविधाएँ देकर अनुगृहीत करने वाले श्री धर्म, बा. राजकिशनजी व उनके | सुपुत्ररत्न श्री बा. प्रेमचन्द्र जी दरियागज दिल्ली श्री चिन्तामणि देवी कलकत्ता एवं श्री दा. सिधई कन्दनलालजी सागर आदि ग्राहक महानुभाव एवं श्री धर्मबा. इन्द्रचन्द्र जी लील्हा कलकत्ताआदि ।
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दरियागंज दिल्ली 9 नवम्बर 1950 दीपमालिका-पत्र
सुन्दरलाल शास्त्री प्राचीन न्याय काव्यतार्थ
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