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________________ @ % % %% % % %% % सम्पादकीय . . . . . (प्रथम संस्करण से साभार) श्रीमत्सोमदेवसृरि के 'यशस्तिलकन्नम्यू' च प्रस्तुत प्रन्थरत्न के अध्ययन-मनन से | हमारी मनोभूमि में उनकी बहुश्रुत, सार्वभौम व अगाध विद्वत्ता के प्रति गाढ़ श्रद्धा का | बीज अङ्कुरित एवं पल्लवित हुआ । अभिप्राय यह है कि हम श्रुतवाङ्मय की पवित्रतम् सेवा, आचार्य के प्रति गाढ़ श्रद्धा एवं समाज राष्ट्र के नैतिक जीवन स्तर को उच्चतम बनाने की सदभावना से प्रेरित होकर अपनी विचारधारा का परिणाम स्वरूप यह हिन्दी अनुवाद पाठकों के कर कमलों में भेंट कर रहे हैं । इस क्लिष्ट ग्रन्थ की उलझी हुई गुत्थियों के सुलझाने में हमे इसकी महत्वपूर्ण संस्कृत टीका का तथा भाषानुवाद को पल्लवित । विस्तृतरूप देने में यशस्तिलकचप्पू, आदिपुराणा, कौटिल्य अर्थशास्त्र, कामन्दकीथ नीतिसार. चरक संहिता-आदि ग्रन्थों तथा संस्कृत टीकाकार के उद्धरणों का आधार मिला । इसकी संस्कृत टीका में वर्तमान गर्ग आदि नीतिकारों के उद्धरण जिन स्थानों में अशुद्ध, त्रुटित व अधूरे मुद्रित थे, उन्हें संशोधित, परिवर्तित करके उनका हिन्दी अनुवाद किया है, परन्तु विस्तारभय से कुछ छोड़ दिया गया है । 1 संशोधन एवं उसमें उपयोगी प्रतियां इसका संशोधन एक मुद्रित मृल प्रति, एक सरस्वती भवन आराकी ह. लि. सं. टी. 3 प्रति तथा तीन ह. लि. मूल प्रतियों, (१ दि., जैन पंचायती मन्दिर मस्जिद खजूर दिल्ली 2 3 भाण्डार गवर्न, लाईब्रेरी पूना से प्राप्त) के आधार से किया गया है । अर्थात् हमने मुद्रित सं. टीका पुस्तक से अन्य प्रतियों में वर्तमान अधिक पाठ व पाठान्तर को कतिपय स्थलों में शामिल और कुछ स्थलों में टिप्पणी में उल्लखित चिन्हित करके उसका अनुवाद भी कर ] दिया है। ज्ञातव्य व उल्लेखनीय इसके सातवें त्रयी समुद्देश के पहले सूत्र के, वेदा, का अर्थ हमने आईदर्शन को | अपेक्षा से प्रथमानुयोग-आदि चार वेद बता करके उसके समर्थक आर्ष प्रमाण भी टिप्पणी में दिये हैं, परन्तु यह नैतिक ग्रन्थ सार्वभौम दृष्टिकोण से लिखा गया है, अत: यह अर्थ भी 卐 उपयुक्त मालूम होता है कि वैदिक संस्कृति के आधार चार वेद हैं, १ ऋग्वेद, २ यजुवेंद, 卐 ३ सामवेद व ४ अथर्ववेद । क्योंकि अहद्दर्शनानुयायी श्रुति (वेद) व स्मृति ग्रन्थों का उतना म अंश प्रमाण मानते हैं, जिसमें उनके सम्यक्तव व चारित्र की शक्ति नहीं होती। इस ग्रन्थ का ॥ ॥ जज卐''''''' 卐 瑞览第5 % % %% % % % %
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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