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________________ नोतियाक्यामृत .. ..... होती है। एवं यश-प्रामिभी नहीं होती। परन्तु दो बातें निश्चित होती है, (१) स्वामोको आपतिमें फंसना भौर (२ उसे नरक लेजाना । अर्थात् मूर्ख अधिकारी ऐसे दुष्कृत्य कर बैठता है, जिससे उसका स्वामी भापग्रस्त हो जाता है एवं ऐसे दुष्कम कर डालता है, जिससे प्रजा पोदित होती है, जिसके फलस्वरूप स्वामी नरक जाता है ॥३६॥ नारद' विद्वान्ने भी मूर्खको अधिकारी बनानेसे उक्त हानि निरूपण की है ॥१॥ अधिकारियों को उन्नति, उनको निष्फलता, अधिकारी शून्य राजाकी हानि, स्वेच्छाचारी अधिकारियों का स्वरूप व उनकी देख-रेख रखना सोऽधिकारी चिरं नन्दति स्वामिप्रसादो नोत्सेकयति ॥४०॥ किं तेन परिच्छदेन यत्रात्म• क्लेशेन कार्य सुखं वा स्वामिनः ॥४१॥ का नाम नितिः स्वयमूदतणमोजिनो गजस्य ॥४२॥ अश्वसर्धाणः पुरुषाः कर्मसु नियुक्ता विकुर्वते तस्मादइन्यहनि तान् परीक्षेत् ॥४३॥ अर्थ-जो मन्त्री-श्रादि अधिकारी स्वामोके प्रसत्र होने परभी किसी प्रकार का अभिमान नहीं करता बड़ी चिरकाल तक उन्नतिशील रहता है । अर्थात् कभी पदच्युत न होकर कार्तिव-अर्थ-लाभ आदि द्वारा उन्नति करता है ॥४०॥ शुक' विद्वान्ने भो गर्व शून्य अधिकारोके विषयमें यही कहा है ।।१।। राजाको उन मन्त्री श्रादि अधिकारियों से क्या लाभ ? कोई लाभ नहीं, जिनके होने परभी उसे स्वयं कष्ट उठाकर अपने-बाप राजकीय कार्य करना पड़े। अथवा स्वयं कसंख्य पूरा करके सुखप्राप्त करना पड़े। सारांश यह है कि मन्त्री-श्रादि अधिकारियोंका यही गुण है कि वे स्वयं राजकीय कार्य पूर्ण करके दिखाते है, जिससे स्वामीको कुछ कष्ट न हो और वह सुखी रहे । अन्यथा उनका होना व्यर्थ है । जिस प्रकार घास का बोमा वहनकर उसका भक्षण करने वाला हाथी सुखो नहीं हो सकवा उसी प्रकार मन्त्री आदि सहायकोंके विना स्वयं राजकीय काये-भारको वहन करने वाला राजाभी सुखी नहीं हो सकता। अत एव विजिगीषु राजाको योग्य अधिकारियों व सेवकों की सहायतासे राजकीय कार्य सुसम्पन्न करना चाहिये, तभी वह मुखी हो सकता है अन्यथा नहीं ||४||||४२॥ . नारद' विज्ञामने भी मन्त्री श्रादि सहायकों के विना स्वयं राजकीय कार्य-भारको वहन करने वाले राजाके विषयमें इसी प्रकार कहा है ॥१॥ अन प्रकृति वाले मन्त्री श्रादि अधिकारी अपने २ अधिकारों में नियुक्त किये हुए सैन्धव जातिके घोड़ों के समान विकस-मदोन्मत्त हो जाते हैं । अर्थात जिस प्रकार संग्धव जातिके घोड़े योग्यता प्राप्त कर लेने १ या समार:-मूल नियोगयुक्ते तु धर्मार्थयशाली सदा । सन्देहोछ पुन नममों नरके गतिः ॥ २ तथा पुरु-स्वामिमसादमाखाय न गई कुरखेऽत्र यः । स नम्मति कि कावं अस्थत भाविकात: 11 ३वमानारद:-.-स्वपमाहत्य मु'जाना बसिनोऽपि स्वमावत: । मरेन्द्रनारच गजेन्द्र प्रायः सीवरेचना:
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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