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________________ -------- अमात्य समुद्देश 10. L देता है, उसीप्रकार शक्तिशाली कुटुम्ब युक्त मंत्री भी राज-रूपी वृद्धको जड़से उखाड़कर फेंक देता है ॥१५॥ शुक्र + विद्वानने भी बलिष्ठ पक्षवाले मंत्रीके विषय में इसी प्रकार कहा है ||१|| जो मंत्री राज कोशमें आमदनी कम करता हुआ खा जाता है- नष्ट कर डालता है । १६ N अधिक खर्च करता है, वह राजकीय मूलघन गुरु विज्ञानके उद्धरण का भी यही अभिप्राय है ||१|| थोड़ी आमदनी करनेवाला मंत्री दरिद्रवाके कारण देश व राजकुटुम्ब को पीड़ित करता है ॥१ गर्ग * विद्वान्के उद्धरणका भी यही अभिप्राय है ||१|| REL राजाका कर्तव्य है कि वह विदेशी पुरुषोंको धनके माय व्ययका अधिकार एवं प्राण-रक्षा करनेका अधिकार न देवे । अर्थात् उन्हें धर्म-सचिव व सेना सचिव के उत्तर दायित्व पूर्ण पदों पर नियुक्त न करे । क्योंकि वे उसके राज्यमें कुछ समय ठहर करके भी अपने देश को प्रस्थान कर जाते हैं एवं मौका पाकर राजद्रोह करने लगते हैं। अतः अर्थसचिव व सेना सचिव अपने देशका योग्य व्यक्ति होना चाहिए ॥१८॥ शुक्र विज्ञानने भी कहा है कि जो राजा अम्यदेश से आये हुए पुरुषोंको धनके आय व्ययका व शरीर रक्षा अधिकार देता है वह अपना धन व प्राण खो बैठता है ॥१॥ अपने देशवासी पुरुषों को अर्थ सचिव आदि पदों पर नियुक्त करनेसे उनके द्वारा लोभवरा महब किया हुआ धनकुमें गिरो हुई धनादि वस्तु के समान कुछ समबके बाद भी मिल सकता है । भर्वात् जिसप्रकार कुएं में गिरी हुई धनादि वस्तु कालान्तर में प्राप्त की जासकती है, उसीप्रकार अपने देशसे अि कारियों— अर्थ सचिव आदि द्वारा कारणवश ग्रहण किया हुआ धन भी कालान्तर में मिल सकता है, परन्तु विदेशी अधिकारियों द्वारा गृहीत धन कदापि नहीं मिल सकता, मदः धर्म-सचिव मादि मंत्री मक्ष अपने देशका ही होना चाहिये ।। १६ ।। नारद 'विद्वान्ने भी स्वदेशवासी अर्थ-सचिवके विषयमें इसीप्रकार कहा है ॥ १ ॥ अत्यन्त कृपया मन्त्री जब राजकीय मन महस कर सेवा है, वथ उससे पुनः मन वापिस मिलन - भामन्त्री संगति पार्थिवद् कस्योयो पारध १ सया च गुरु- मन्त्रियं कुते वस्तु वा महाव्ययम् । धात्मविचस्य भसक होति गायमुखमेमात्र मन्त्रिचं प्रकरोतिषः तस्य राष्ट्रवादिपाचैव॥1॥ ३ ८ तथा च शुक्रः- अम्बरेच पोविकार भोवद ददाति माधर का सोऽर्थान्यते ॥१॥ ५ व्या च नारदः—अधिकार राज्य यः करोति स्वदेश । तेन गृही बदन मृग १ ॥ मह ॥१॥ ॥n
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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