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________________ २६८ नीतिवाक्यामृत Poronaus.....00 स्वामिनम् ।।१४गबलवत्पदो नियोगाभियुक्तः कन्लोलइय समूल नृपांघ्रिपमुन्मूलयति ॥१५॥ अल्पायतिर्महाव्ययो भक्षयति राजार्थम् ॥१६॥ अल्पायमुखो जनपदपरिग्रही पीड़यति ॥१७। नागन्तुकेष्वर्थाधिकारः प्राणाऽधिकारो वास्ति यतस्ते स्थित्वापि गन्तारो ऽपकर्तारो वाB ॥१८॥ स्वदेशजेष्वर्थः कूपपतित इव कालान्तरादपि लन्धु शक्यते ॥१६॥ चिक्कणादर्थलामः पाषाणादन्कलोत्पाटनमिव । २०॥ अर्थ-रामा या प्रजा को निम्न प्रकार दोषन्दूषित व्यक्ति के शिव मंत्री पद पर नियुक्त नहीं करना पाहिये ।१ अत्यंत क्रोधी, २ जिसके पछमें बहुतसे शक्तिशाली पुरुष हों, ३ वाम-अभ्यन्तर संबंधी मलिनता से दूषित, ४ व्यसनीयत-क्रोक्न मद्यपान आदि व्यसनोंसे दूषित, ४ नीचकुलवाला, ६६ठी-जो उपदेश द्वारा मसत् कार्य करने से न रोका जासके, ७ आमदनी सेभी अधिक खर्च करने वाला, 5 परदेशी और रुपण (लोभी) अभिप्राय यह है कि ये मंत्रीमें वर्तमान दोष राज्य-क्षतिके कारण हैं। क्योंकि क्रोधी पुरुष मंत्री होनेसे जब कभी भपराधवश दण्डित किया जाता है, तो वह अपनी करप्रकृति के कारण या तो स्वयं मर जाता है अथवा अपने स्वामी को मार डालता है इसी प्रकार जिसका पक्ष-माता-पिता-आदि वशिष्ठ होता है, वह अपने पक्षकी सहायता से राजा को नष्ट कर देता है। इसी तरह अपवित्र मंत्री प्रभाव होन व राजाको अपने स्पर्शसे दूषित करता है । एवं व्यसनी कर्तव्य-अकत्तव्य के ज्ञान रहित,नीष कुल्लका थोड़ासा वैभव पाकर मदोन्मत, हठी दुराग्रह-वश हितकारक उपदेशकी अवहेलना करनेवाला, अधिक खपीला स्वाप-शति होनेपर राजकीय सम्पचि कोभी हदप करनेवाला, परवेशी मंत्री प्रजाकी भलाई करने में असमर्थ स्थिरतासे अपना कर्तव्य पालन न करनेवाला एवं लोभी मंत्री भो कर्तव्य-पराम्मुःख होता है । पहा दोष-क्षिप्त पुरुषको मंत्री नहीं बनाना चाहिए ॥१३॥ एक विद्वान उद्धरणका भी यही अभिप्राय है ॥१॥ क्रोधीमंत्री होनेसे अपराध-वरा दखित किए जाने पर अपनी कर प्रकृति-वश विचार-शून्य होकर वा तो स्वयं अपना या अपने स्वामीका घात कर डालता है ॥१४॥ प्रबल पाचाला व्यक्ति मंत्रीपद पर नियुक्त हुआ महान् नदी पर समान राजारूपी पृथको जासे प्रसाद देता है। अर्थात् जिसप्रकार नदीका शक्तिशाली अल-प्रवाह अपने सटवी वृहों को जड़से पसार - - -.--- - - - A इसके पश्चात् 'मतगव इए यह पद सू० प्रतियों में है, जिसका अर्थ मदोन्मत हाबी प्रामदनीकेसमान आमना साहस शेष पूर्ववत् | B'सस्ते पद से खेकर अखीर वकका पाठ म०प्रतियों से समान किया गया है। प्यार एक- तीजकुर दुरापारमकुणीनं विदेशजम् । एकमाई म्मयप्रायं कृपय मन्त्रि त्यजेत् ॥१॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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