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________________ स्वामीसमुद्देश arranea ...... . ...... .......... .RAMHMoni t o n ..... . . . ... परमर्माकार्यमश्रद्धेयं च न भाषेत ॥ २६ ॥ अर्थ-राजा श्राझा-भंग करनेवाले पुत्रपर भी क्षमा न करे-यथोचित दंड देवे ॥ २३ ॥ नारद' विद्वानने कहा है कि 'राजाओंको आशा-भल होनेसे बिना शस्त्रके होनेवाला वध समान महाकष्ट होता है, इसलिये प्राण-रक्षाके इच्छुक पुरुषोंको किसी प्रकार भी राजकीय प्राक्षा उल्लान न करनी चाहिये ।। १॥ जिसकी प्राज्ञा प्रजाजनों द्वारा उल्लङ्घन की जाती है, उसमें और चित्र (फोटो) के राजामें क्या अन्तर है ? कोई अन्तर नहीं । अर्थात् असे मृत-प्राय समझना चाहिये ।। २४ । गुरुरे विद्वान उद्धरणका भी यहो अभिप्राय है ॥ १॥ जिसे राजकीय पक्षासे जेलखाने पानिको सजा मिल चुकी है, उस दरित पुरुषका पच नही करना पाहिये । अन्यथा पज्ञ करनेवाला सज्ञाका पात्र होता है ।। २५ ।। भारद्वाज' विद्वानने भी सजा पाए हुए की पक्ष करनेवाले के विषयमें इसी प्रकार कहा है ।।१।। नैतिक पुरुष निरर्थक व विश्वास करनेके अयोग्य दूसरेकी गुप्त बात न कहे ॥२६ ।। भागुरि विद्वान के उद्धरणरोगी ही बात पनी होती!१॥ अज्ञात वेष-आधार, राज-क्रोध व पापी राजासे हानि, राजा द्वारा अपमानित म पूजित पुरुषवेषमाचारं पानभिज्ञातं न भजेत् ४ ॥२७॥ विकारिणि प्रमो को नाम न विरज्यते ॥२८॥ अधर्मपरे राशि को नाम नाधर्मपरः ॥२९ राज्ञायज्ञातो यः स सरवज्ञायते ॥३०॥ पजित पूजयन्ति लोकाः ॥३१॥ 'परमर्मस्पर्शकामभरोषमसरयमतिमान व भाषेत इस प्रकारका पाठान्तर मू० प्रतियों में है, जिसका अर्थ है कि पिछी मनुष्य इसरोक हथको चोट पहुंचानेवासे, बिरखासके भयोम्प, अधिक मा-कोर हे पचन । थाप नारदः-शाहामको नरेलाबामसस्त्रोच रमते । प्राणार्षिभिर्म व्यस्तस्मात् सोडाचन ५ सबा गुरु-पस्याहा बन्ति भूमौ स्पस्व मागणः । पाल्पगः स मनायो । मनः संचव ॥ । पा र मारदान:-विदो पलते पस्त पते: सामानमः । वस्ताव पते पस्नुस दोर्हो भोबरः ॥m बाप भागुरिः-पामर्म पत्ताय कापवाद' कथंचन । प्रबर विवादितमात्मकः ॥ x समाचार वाऽनभिजालन्न भनेव' इस प्रकार मू. प्रतियों में पाठ है, परन्तु ममेद पुष नहीं।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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