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________________ नीविनाक्यामृत स्वेच्छाचारी-अपनी इच्छानुकूल प्रवृत्ति करनेवाला-प्रात्मीयजनों अथका शत्रुओं द्वारा मार दिया जाता है ॥२०॥ अत्रि विदामने भी कहा है कि 'झान-वृद्ध पुरुषोंसे विना पूछे ही अपनी इच्छानुकूज पलनेवाला पुरुष अकशहीन (मर्यावा-वाह) हुआ अपने कुटुम्बियों या शत्र प्रओं द्वारा वध कर दिया जाता है ॥ १॥ राजकीय ऐश्वर्य-सैन्य-कोश-शक्ति-प्रजा व प्रकृति (अमात्य-प्रभृति) द्वारा मामा-पालन से हो सफल होता है ॥२१॥ बलभदेव' विद्वान्ने भी कहा है कि "जिसकी प्राज्ञा सर्व-मान्य हो, वही राजा कहा जाता है, परन्तु जिसकी माझा नहीं मानी जाती ऐसा कोई भी व्यक्ति, केवल अभिषेक, व्यसन (अमरप्रभृतिसे हवा किया जाना) और पबंधन आदि चिन्होंस राजा नहीं हो सकता। क्योंकि उक्त अभिषेक आदि कार्य प्रण (फोदा) के भी किये जाते हैं । अर्थात् प्रण-फोड़ेका भी अभियेक (जलसे धोया जाना), वजन (पखोंसे हवा किया जाना) व पट्टबंधन (पट्टी बांधना) होता है ॥ १ ॥ राजकीय आज्ञा समस्त मनुष्योंसे उल्लङ्घन न किये जानेवाले प्राकार (कोट) के समान होती है। अर्थात् जिसप्रकार अत्यन्त विशाल व उंचा कोट उल्लकन नहीं किया जा सकता, उसीप्रकार रामकीय आशा भी किसीके द्वारा उल्लङ्घन नहीं की जाती ॥२२॥ गुरु' विद्वान्ने मी राजकीय आशाफे विषयमें इसीप्रकार कहा है ॥ १ ॥ राज- कत्र्तव्य (अपराधानुरूप दंड विधान), पाशाहीन राजाकी की मालोचना, सजाके योग्य पुरुष व मनुष्य-कर्तव्य-दूसरेका गुप्त रहस्य न कहना आज्ञाभकारिणं पुत्रमपि न सहेत ॥२३॥ कस्तस्य चित्रगतस्य च विशेषो यस्यामा नास्ति ॥२४॥ राजाज्ञावरुद्धस्य तदाज्ञा न भजेन् *||२५॥ । तया च त्रिः-स्वेच्या वर्तते पस्नु न एराम् परियति । स परैन्मिठे नूनमारमोरी मिश: ॥५॥ २ तमाम स्वामदेव- स एवं प्रोपते राजा वस्याज्ञा सर्वतः स्थिता । अभिनेको प्रवस्थापि या परमेव च ॥ तथा गुरु:-प्रसम्मो को मोहामा प्राकार इव मानवः । पमादेशमसौ पचात् कार्य एष किस भूपम् ॥ रामाज्ञापन्दस्य पुनस्वदाज्ञाप्रतिपादन उत्तमसाहसो सम्बयामा तब्दावरचा इस प्रकारका पाठान्तर मू-तिपों में वर्तमान है, जिसका अर्थ यह है कि राजकीय माहासे जेलखानेकी सजा पाया हुमा भपराबी यदि फिरसे पाशा बस्काम करे तो उसे उत्तम साहसर (पूर्वाना विशेष कबी सजा) दिया आवे, पातु वंदेनेवासको उसका अपराध मालम न होने पर भी जसपर शक होनेसे उसे वही उत्तम साइसवंड दिया जाये।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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