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________________ व्यसनसमुदेश LAN DHANDA .. . हारोत'विद्वान ने भी शिष्ट पुरुषोंका इसीप्रकार लक्षण किया है ॥ १॥ युद्धिमान मनुष्यको शिष्ट पुरुषों की साति और दुष्टोंकी कुमंगति के त्याग द्वारा एवं जिन उत्तम कथानकोंमें प्राचीन महापुरुषोंका अादर्श चरित्र-मित्र किया गया। जनके पाऽन्त-अवगा द्वारा अपने कृत्रिमकुसंग-अनित-व्यसनोंका नाश कर देना चाहिये ॥ ५ ॥ शुक्र विद्वान ने भी इसीप्रकार कहा है। निजस्त्री-बासक्ति, मद्य-पान, मृगया (शिकार), चव, पैशुन्य प्रभृति १८ प्रकारके व्यसनस्त्रियमतिशयेन मजमानो भवत्यवश्य तृतीया प्रकृतिः ॥६॥ सौम्यधातुक्षयेण सर्वधातुक्षयः ।। पानशौएडश्चित्तविभ्रमान मातरमपि गच्छति ॥८॥ मृगयासक्तिः स्तेनव्यालद्विषहायादानामामिपं पुरुष करोति ॥६।। बू तासक्तस्य किमप्यकृत्यं नास्ति'॥१०॥ मातर्यपि हि मृतायां दी. व्यत्येव हि कितवः ॥११॥ पिशुनः सर्वेषामविश्वासं जनयति ॥१२॥ दिवास्वापः गुप्तव्याधिव्यालानामुत्थापनदंडः सकलकार्यान्तरायश्च ॥१३॥ न परपरीवादात् परं सर्वचिद्वषणभेषजमस्ति ॥१४॥ तौर्यत्रयासक्तिः प्राणार्थमानर्वियोजयति ॥१५॥ अथाय्या नाविधाय कमप्यनथं विरमति ॥१६॥ अतीवेालु स्त्रियो अन्ति त्यजन्ति वा पुरुषम् ॥ १७ ॥ परपरिग्रहाभिगमः कन्यादूषणं वा साहसम् ॥१८॥ यत् साहसं दशमुखदण्डिकाविनाशहेतुः सुप्रसिद्धमेय ।।१६।। यत्र नाहमस्मीत्यध्यवसायस्तत् साहसम् ॥२०॥ अर्थदकः कुवेरोऽपि भवति भिक्षाभाजनम् ।।२१॥ अतिव्ययोऽपापव्ययश्चार्थदक्षणम् ॥२२॥ हर्षामर्षाभ्यामकारणं कृणाकुरमपि नोपहन्यानिकपुनर्मय॑म् ॥२३॥ श्रूयते किल निष्कारणभूतावमानिनों वातापिरिल्वलश्च द्वावसुरावगस्त्याशनाद्विनेशतुरिति ॥२४॥ यथादोष कोटिरपि गृहीता न दुःखायते । अन्यायेन पुनस्तृणशलाकापि गृहीता प्रजाः खेदयति ॥ २५ ॥ तरुच्छेदेन फलोपभोगः सकृदेव ॥२६॥ प्रजाविभवो हि स्वामिनोऽद्वितीयो भाण्डागारोऽतो ----... ...-----...-.... ...१ तथा र हातः-परचित्तानुकूल्येन विक्रि व्यसनात्मके । जनयन्तीष्टनारोम ते शेषा योगिनो नराः ।। ... २ तथा र शुक्रः-श्राहार्यम्यसनं नश्येत् [सत्सक नाहितासितम्] महापुरुषवृत्तान्तः श्रुतेश्चैव पुरातभैः ।।१।। सं०प० ३ 'नास्त्यावं यासक्तस्य' इसप्रकारका मु. प्रतियों में पाठ है परन्तु अर्थभेद कुछ महीं। 'तीय त्रिकासक्तिः कं नाम प्राणार्थमानेने वियोजयति' इसप्रकारका पाठ मू० प्रतियों में है, परन्तु अर्थभेद कुछ नहीं। ---
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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