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________________ २२६ नीतिवाक्यामृत --MISSIO इच्छुक है और इसीकारण मुझे यहाँ रोक रहा है, तब उसे शत्रु की आज्ञाके विना ही वहाँसे प्रस्थान कर देना चाहिये या स्वामी के पास गुप्तदूत भेज देना चाहिये ॥ ६ ॥ हात विद्वान् ने कहा है कि 'चतुर दूत शत्रुको अपने स्वामीसे युद्ध करनेका इच्छुक जानकर शत्रुको आज्ञाके विना ही अपने स्वामी के स्थानपर पहुँच जावे या गुप्त दूत भेज देवे ।। १ ।।' यदि शत्रुने दूतको देखकर ही वापिस लौटा दिया हो, तो दूत उसका कारण सोचे ॥ ७ ॥ गर्ग विद्वान ने भी कहा है कि 'शत्रु द्वारा शीघ्र वापिस भेजा हुआ दूत उसका कारण जानकर स्वामीका हित करे || १ | दूतका स्वामी- हितोपयोगी कर्त्तव्य कृत्योपग्रहाऽकृत्योत्थापनं सुतदायादा वरुद्वोपजापः स्वमण्डलप्रविष्टगूढपुरुषपरिज्ञानमन्तपालादविककोश देशतन्त्रमित्रायवधिः कन्यारत्नवाइन विनिश्रावणं स्वाभीष्टपुरुषप्रयोगात् प्रकृतिक्षोभकरणं दूतकर्म ॥ ८ ॥ मन्त्रिपुरोहित सेनापतिप्रतिबद्धपूजनोपचारविश्रम्भाभ्यां शत्रोरितकर्त्त व्यतामन्तः सारतां च विद्यात् ॥ ६ ॥ स्वयमशक्तः परेणोक्तमनिष्टं सहेत ॥ १० ॥ गुरुष स्वामिषु वा परिवादे नास्ति चान्तिः।। ११ ।। अर्थ---दूत स्वामी - हितार्थ शत्रु- राजाके यहाँ ठहरकर निम्नप्रकार कर्त्तव्य पालन करे। १ नैतिक उपाय द्वारा शत्रु कार्य- सैनिक संगठन आदि को नष्ट करना, २ राजनैतिक उपाय द्वारा शत्रुका अनर्थ करनाशत्रु-रोबी - कुद्ध, लुम्ब, भीत और अभिमानी - पुरुषोंको सामन्दान द्वारा वशमें करना आदि, ३ शत्रु के पुत्र, कुटुम्बी व जेलखाने में वन्दीभूत मनुष्यों में द्रव्य दानादि द्वारा भेद उत्पन्न करना, ४ शत्रु द्वारा अपने देशमें भेजे हुए गुप्त पुरुषों का ज्ञान, ५ सीमाधिप, आटविक (भिल्लादि), कोश देश, सैम्प और मित्रोंको परीक्षा, ६ शत्रु राजाके यहाँ वर्तमान कन्यारत्न तथा हाथी-घोड़े बाद वाहनोंको निकालनेका प्रयत्न अथवा गुप्तचरों द्वारा स्वामीको बताना, ७ शत्रु - प्रकृति ( मंत्री- सेनाध्यक्ष - श्रादि) में गुमपरों के प्रयोग द्वारा क्षोभ उत्पन्न करना ये दूत के कार्य हैं ॥ ८ ॥ १ तथा च हारीय – सम्धानं परं शत्रु दूधो शाश्य । विश्वचणः । अनुक्तोऽपि गृहं गच्छेत् गुप्तान् वा प्रेषये ॥ १ ॥ २ तथा च गर्गः – शत्रुण। प्रेषितो तो यच्छ्रीम' प्रविचिन्तयेत् । कारणं चैव विज्ञाय कुर्यात् स्वामिहितं ततः ||१|
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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