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________________ S श्रीममन्तभद्राय नमः श्रीमत्सामदेवसूनि चिरचित नीतिवाक्यामृत का हिन्दी अनुवाद १. धर्मसमुद्देश 01:05 * ग्रन्थकारका मङ्गलाचरण * मोमं सोमममाकार सोमाभं गोमसंभवम् । श्रमदेवं मुनिं नन्वा नीतिवाक्यामृतं ॥१॥ R अर्थ:-अशय कीर्तिमान्, चन्द्रमा कान्तियु अम्मरकुलम ( अनन्तदर्शन, अनन्तमा सुख और अनन्तवीर्यरूप आत्मिक लक्ष्मी ) और बहरलक्ष्मी ( समत्रमविभूति आदि ) मे अलङ्कृत, सोमवंश (चन्द्रवंश) में उत्पन्न होनेवाले और त्रिकालवर्ती अनन्तानन्न पदको हस्तक् की तरह प्रत्यक्ष जाननेवाले ( स ) ऐसे भी चन्द्रप्रभ तीर्थङ्करको नमस्कार करके मैं नीतिवामृत शास्त्रका प्रतिपादन करता हूं । १ चारों वर्ण (ह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ) तथा चारों श्राश्रमों (ब्रह्मचारी, गृहस्थ, रानप्रस्थ प्रति) मैं बर्तमान जनता जिसके द्वारा अपने अपने चामत्र्तयों) में स्थापित की जाती है उसे "नीति" कहते हैं अथवा मी के राजा को जो धर्म, अर्थ और काम से संयोग वे उसे "नीति" कहते है । उनी करनेवाले शास्त्र में विद्यमान है हम इसे ""कते है। प्रथम इस शास्त्र के अमृततुल्य वाक्यसमूह विजयी राजादी -- विवe, पान और अमन श्रादे) में उत्पन्न दुई भन्ने pr' grà‡ [ature pang defd za 3• ? &}
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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