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________________ २१२ नीतिवाक्यामृत ........ HM गौतम' विद्वान्ने भी कहा है कि 'जो शिष्य सदा गुरुकी आज्ञा-पालन अपनी इच्छानुकूल प्रवृशिनिरोध करता है और विरून पर: नया इस शेसा है, ओ विद्या-प्राप्तिमें सफलता होती है |॥१॥' प्रत-पालन--महिमा, सत्य व अचौर्य-मादि समाचार प्रवृत्ति, विद्याध्ययम और प्रायुमें बड़े पुरुषों के साथ नमस्कारादि नम्रताका पात्र करना विनय गुण है। सारांश यह है कि नती, विद्वान व वयोवृद्ध (माता-पिता आदि) पुरुष जो कि क्रमशः सदाचार-प्रवृत्ति, शास्त्राध्ययन और हित चितवन आदि सद्गुणों से विभूषित होने के कारण श्रेष्ठ माने गये हैं, उनको नमस्कारादि करना विनय गुण है ॥६|| गर्ग' विदामने भी कहा है कि 'जो प्रत-पालनसे उत्कृष्ट एवं विद्याध्ययनसे महान और वयोवृद्ध है, सनकी भक्ति करना 'विनय' कहा गया है ।' प्रतो महापुरुषोंकी विनयसे पुण्य-प्राप्ति, विद्वानोंकी विनयसे शास्त्रोंका वास्तविक स्वरूप-हान एवं माता-पिता-प्रादि वयोवृद्ध हितैषियोंकी विनयसे शिष्ट पुरुषोंके द्वारा सन्मान मिलता है |७|| विद्याभ्यासका फल अभ्यासः कर्मसु कौशलमृत्पादयत्येव यद्यस्ति तज्ज्ञभ्यः सम्प्रदायः ।।८।। अर्थ-यदि विद्या जिजामु पुरुषों के लिये विद्वान् गुरुओंकी परम्परा चली श्रारही है तो उस क्रमसे किया हुश्रा विद्याभ्यास कर्तव्य पालनमें चतुरता उत्पन्न करता है। अभिप्राय यह है कि विद्वान गुरुयोंकी परम्परापूर्वक किये हुए विद्याभ्याससे शास्त्रोंका यथार्थ बोध होता है, जिससे मनुष्य कर्तव्य पालनमें निपुणता प्राप्त करता है ॥६॥ शिष्य कर्तव्य (गुरुकी माझा पालन, रोष करनेपर जबाब न देना व प्रश्न करना आदि) क्रमश: गुरुवचनमनुल्लंघनीयमन्यत्राधर्मानुचिताचारात्मप्रत्यवायेभ्य:A | - -.-..- ...-. . . . . .---. .. .. . .. ...... १ तथा च गौतमः-सदादेशको यः स्यात् स्वेचना न परतते । विश्यमतांचः स शिष्यः सिदिभाग्मवेत् ॥ १५ २ वया गर्ग:-अतविचाधिका ये च समापयसाधिकाः । मतेषां क्रियते भक्तिविनयः स कदाइल: म॥ A गुरुवपनमनुसंधनीयमन्यत्राधर्मानुचिताधारात' ऐसा मु. वह क्षि८ मू. प्रतियाम पाठ है, जिसका अर्थ यह है कि शिष्यको गुरुके वचम उल्लघन नहीं करने चाहिये, परन्तु अधम र नाति-विरुद्ध प्रवृत्ति संबंधी बकि उरूकान करने में कोई दोष नहीं है।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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