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________________ सोमवसरिके 'काल्खोल पयोनिधि' 'कविराज कुकर' पर्व गद्य पद्य-दिवाकआदि विशेषण हमके महाकविध के दर्शक हैं एवं यशस्विजरचम्पू के अन्तिम दो आश्वास, जिनमें उपारकाध्ययन भावाचार का पिशव विवेचन किया गया है, एवं जिसके बहुभाग का मैले नीतिवाक्यामृत के धर्म समुदेश में हिन्दी अनुवाद भी किया है, उससे पाठक स्वयं उनकी धार्मिक बहुश्रुत-विद्वत्ता का अनुभव परमे।मेरी समझ में स्वामी समन्त भद्राचार्य के रत्नकरण्डश्रावकाचार के बाद श्रावकों का मापारसाव भभी तक ऐसी अज्ञाबद्ध ब्याख्यापूर्वक ऐसी उत्तमता के साथ किसी विद्वान द्वारा नहीं दिखा गदा । इसी प्रकार मोमदेव सूरि की राजनीतिज्ञाता राजनैतिक सिद्धान्तों से ओत प्रोत इस नीवि-वाक्या. सा से पर्व पतिलक के हरे पाश्चास द्वारा जो कि राजनैतिक तत्वोंसे भरा हुआ है, प्रमाणित होती है। - अभी तक अनाचार्यो व विद्वानों में से सोमदेव सरि के सिवाय किसी भी विद्वान् व भाचार्य ने 'राजनीतिक विषय पर शास्त्र रचना नहीं की, अतः यह नीतिवाक्यामृत' जैन पाहमय में अद्वितीय है। प्रस्तुत भाषार्य श्री की रन्थरचना नीसिवाक्यामृत को प्रशस्ति' एवं 'दान पात्र' से विदित होता है कि सोमदेवरि ने १-नीति पावास, २-यशस्ति लकचम्प, ३ युक्तिचिन्तामणि (न्याय प्रन्य), ४ --त्रिवर्गमहेन्द्रमातलिसंजल्प, स्वान्दोपनिषत् पचे अनेक सुभापित इस प्रकार ६ मन्यों की रचना की है। इनमें से शुरू के दो अन्य(मीविकायत और यशस्तिलक) उपलब्ध हैं, बाको के ग्रन्थों का अभी तक कोई पता नहीं । नीतिवापासून को मस्ति में आचार्यश्री ने उक्त प्रन्योंका हजेख किया है,अत; नोतिवाक्यामृत ही मन्तिम रचना विशाल अध्ययन एवं विचारों की उदारता-- वीखिवाक्यामृत व यशस्तिनक के गम्भोर अध्ययन से विदित होता है कि सोमदेवसरि का अभ्य. बम केका जैन कामय में ही सीमित नहीं था, परन्तु इन्होंने उपजम्प समस्त न्याय, व्याकरण, काव्य, मीकि-बादि समस्त विषयों पर अपना अधिकार जमा रक्खा था, इनमें सार्वभौम विद्वत्ता थी। पशस्तिमा अन्तिम दो पाश्वास उन को जैन धर्म पर गाद श्रद्धा के प्रदर्शक है, वापि उन्होंने शान के मार्ग को सर्वसाधारण घास उपादेय बताकर असे संकीर्ण नहीं किया था। वे व्याकरण, न्याय दर्शनशात्र हन, जैमिति, कपिल, कणपर चावोंक व शाक्यसिद्धान्त), कमाए छन्द प प्रमशररास्त्र को तीर्थमार्ग सशसाधारण समझते थे। x समय र स्थान बास्तिक्षक को प्रशस्ति में लिखा है, कि चैत्र शु० १३, शक सवत ८८ (विक्रम संवत् १-१६) को रिस समय श्री कृष्णराजदेव पाण्ड्य, सिंहल, चोल व धेर भावि राजाओं को जीतकर मेलपाटी मामक सेना शिविर में थे, उस समय उनके चरणकमलोपजीवी सामन्त दिन की-जो पालुक्यवंशीय ति: सान्दोकारा: समयागमाः । सर्वसाधारसासर्भिस्तीमार्गादव स्मृताः | मशरनजक पूर्ण श्लोक
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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