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________________ मन्त्रिसमुद्देश १६७ 01-0IMM.... अर्थ-अधीरता (घबहानाम्याकुल होना) मनु यकी समस्त काय-सिद्धि में अत्यन्त वाधक है मर्थात्-जो मनुष्य कर्तव्य करते समय व्याकुल होजाता है, उसका कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता; अतः कसंध्यमें उतावली करना उचित नहीं ॥१३४॥ गुरु' विद्वान्ने कहा है कि 'लोगोंका अधीरता दोष समस्त कार्योंकी सिद्धि में बाधक है और बहुत से राजकीय कार्यों में उलझे हुए राजाओंकी कार्य सिद्धि में तो वह विशेष रूपसे बाधा डालता है ||१|| ___ कुलीन पुरुष शरत्कालीन बादलोंकी सरह व्यथै बकवाद करनेवाले और गरजनेवाले नहीं होते। मर्थाम्-जिसप्रकार शरत् कालो बादल केवल गरजते हैं बरसते नहीं, उसीप्रकार कुलीन उत्तम पुरुष व्यर्थ नहीं बोलते किन्तु अच्छे २ पुण्य व यशस्य कार्य करके दिखाते हैं ।। १३५॥ गौतम विद्वान्ने भी कहा है कि 'राजाओंको जलवृष्टि-रहित व व्यर्थ गरजनेवाले शरत् कालीन बादलों के समान निरर्थक बोलनेवाले नहीं होना चाहिये ॥ १ ॥ अच्छी-बुरी वस्तु व दृष्टान्त द्वारा समर्थन न स्वभावेन किमपि वस्तु सुन्दरमसुन्दर वा, किन्तु यदेव यस्य प्रकृतितो भाति तदेव तस्य सुन्दरम् ।। १३६ ॥ न तथा कपूररेणुना प्रीतिः केतकीनां वा, यथाऽमेध्येन ॥ १३७ ।। अर्थ-अच्छापन व चुरापन केवल पुरुषोंकी कल्पनामात्र है, क्योंकि संसारमें कोई वस्तु अच्छी और बुरी नहीं है, किन्तु जो जिसको प्रकृति अनुकूल होनेसे रुचती है, वह उसकी अपेक्षा सुन्दर है यदि वह निकृष्ट ही क्यों न हो ॥ १३६ ।। जैमिनि विद्वाम्ने भी कहा है कि 'संसारमें कोई वस्तु प्रिय व अप्रिय नहीं है, परन्तु जो मनको प्रिय मालूम होती है वह निकृष्ट होनेपर भी सुन्दर है ॥ १॥ मक्खियाँको जिसप्रकार मल-मूत्रसे प्रीति होती है, वैसी कपूर-धूलि व केशकी पुष्पोंसे नही होती ॥१३॥ अत्यन्त क्रोधी तथा विचार-शून्य पुरुषकी और परस्परकी गुप्त दात कहनेसे हानिका कमश: अतिक्रोधनस्प प्रभुपमग्नौ पतित' लवणमिव शतधा पिशीयते ॥१३॥ १ तथा च गुरुः-म्पाकुलत्वं हि लोकार्मा सर्वकृत्येषु विनकृत् । पार्थिवानां पिरोपेण [येषा कार्याणि भरिण:] uns नोट-उङ्ग श्योकका पतर्थ परच संशोधित किया गया है। सम्पापक२ तया च गौतमः-वृथालापन भाई अभूमिपाः कदाचन । पपा शरधना कुयु स्तोयवृष्टिविवर्जिताः ॥१॥ संशोधित३ तथा प जैमिनिः-सुन्धरासुन्दरं सोफे म किंचिदपि वियते । निहाष्टमपि वच्छ, मनसः प्रतिभाति यत् ॥।॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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