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________________ १६६ नीतियाक्यामृत .HD ... . . ma-n. भृगु' विद्वान्ने भी कहा है कि 'सासन लोग दूसरोंके अच्छे या बुरे प्रयोजनको विना जाने या समझे अपना मानसिक अभिप्राय प्रकाशित नहीं करते ॥१॥ महापुरुषोंके वचन दूधवाले वृक्षकी तरह फलदायक होते हैं। अर्थात् जिसप्रकार दूधवाले वृक्ष उत्तम मिष्ट फल देते हैं, उसीप्रकार सजन पुरुषोंके घचन भी उत्तम २ फलदायक (ऐहिक और पारत्रिक कल्याण देनेवाले ) होते हैं ।।१३।।' धर्ग विद्वान्ने कहा है कि 'जिसप्रकार दुधवाला वृक्ष शीघ्र उत्तम फल देता है, उसीप्रकार सज्जन पुरुषोंके वचन भी निस्सन्देह उत्तम फल देते हैं ॥१।।' नीचप्रति मनुष्य और महापुरुषका क्रमशः स्वरूप दुरारोहपादप इव द डाभियोगेन फलप्रदो भवति नोचप्रकृतिः ॥१३२॥ स महान् यो विपत्सु धैर्यमवलम्बते ॥१३॥ अर्थ-जिसप्रकार अधिक ऊंचाई व कंटक-आदिके कारण चदनके अयोग्य वृक्ष (ग्राम-आदि) लाठी आदिके प्रहारों से साड़ित किये जानेपर फलदायक होते है, उसीप्रकार नीचप्रकृतिका मनुष्य भी दसित किये जाने पर काबू में आता है साम-दान से नहीं ॥१३२।। भागरि विद्वान्ने भी कहा है कि जिसप्रकार शत्र और न चढ़ने योग्य वृक्ष दाहसे ताड़ित किये जानेपर फल देता है, उसीप्रकार नीच मनुष्य भी दयनीति से ही यश होता है ।।१।। ओ आपत्तिमें धैर्य, धारण करता है वही महापुरुष है ॥१३॥ गुरु विद्वान्ने कहा है कि 'जो राजा आपत्ति-काल आनेपर धैर्य धारण करता है यह पृथिवी-तस्त्र में महत्व प्राप्त करता है। शा' समस्त कार्यों में असफल बनानेवाला दोष व कुलीन पुरुषका क्रमशः स्वरूप उत्तापकत्वं हि सर्वकार्येषु सिद्धीनां प्रथमोऽन्तरायः ॥१३४॥ शरद घना इव न खलु घृथालापा गलगर्जित कर्षन्ति सत्क लजाताः ॥१३॥ १ सया च मृगुः-पावा परकार्य च शुभ वा यदि पाशुभं । अन्येषां म पकाशेयुः सन्तो नैव निजाशय ॥१॥ र तथा च वर्ग:-भाखापः साधुलोकानां फसादः स्यादसंशयम् | अधिरे व कालेन वीरबलो पथा तथा ॥१॥ या भागुहिवरखाइयो यथारातिराहो महीरुदः । तथा फनप्रदो जूनं गोधप्रकृतिरत्र यः ॥१॥ . ४ तथा च गुरुः-आपत्कालेऽत्र समाप्ती धैर्यमासम्बते हि यः । स महत्वमवाप्नोति पार्मिवः पृथिवीपले ॥ A 'शरद्घमा इ न तु खलु घृषा गज़गर्जितं कुर्धन्त्यकुलीनाः' इस प्रकारका पाठान्तर मु. मू. प्रतिमें है, जिसका अर्थ यह है कि जिसप्रकार शरदकालीन वादन गरजते हैं . बरसते नहीं, उसोप्रकार नीचकमके पुरुष ध्यप बकवाद करते हैं, तव्यपासन नहीं करते।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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