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________________ मार्ग मन्त्रिसमुद्देश nana h श्रर्थ- संतोष पुरुष जो कार्य आरम्भ करते हैं, उसमें उन्हें श्रमदनी व खर्च बराबर होता है। तथापि सन्तुष्ट रहते हैं ।। १२० ।। हारीत 'विद्वान ने कहा है कि 'संतोषी पुरुष जिस कार्यमें आमदनी व सर्व बराबर है और यदि बह हाथसे निकल रहा है, तो भी वे उसे संतोष पूर्वक करते रहते हैं, फिरभी नहीं छोड़ते ॥ १ ॥ महामूर्खोका कार्य— SHARPELAPE बहुक्लेशेनाल्पफलः कार्यारम्भो महामूर्खाणाम् ॥ १२१ ॥ अर्थः—महामुर्ख मनुष्य जो कार्य आरम्भ करते हैं, उसमें उन्हें बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं और फल बहुत थोड़ा मिलता है ।। १२१ ॥ अब शङ्काका त्यागपूर्वक कर्त्तव्य-प्रति Sarfara हा है कि 'लोक में महामूर्ख पुरुष अधिक क्लेश-युक्त और अल्पफलवाले कार्य करते हैं और उनसे के विरक्त नहीं होते ।। १ ।। " प्रथम पुरुषोंका कार्यारम्भ यो १६३ कार्यायाः काम् ॥ १२२ ॥ अर्थः-- कुस्मित-निय पुरुष दोषोंके भयसे (इस कार्यके करनेमें यह दोष है और अमुक कार्यमें वह रोष है इत्यादि दोषोंके खरसे) किसी भी कार्यको शुरू नहीं करते । सारांश यह है कि अधन पुरुष मानसी, दीन व वरपोक होते हैं; इसलिये वे दोनोंके डरसे कार्यारम्भ नहीं करते ।। १२२ ।। मृगाः सन्तीति कि कृषिर्न क्रियते B || १२३ ॥ विद्वान ने भी कहा कि कुत्सित पुरुष भयभीत होकर कर्त्तव्यमें दोषोंका स्वयं चितवन करते हुए कार्य भी नहीं करते ।। १ ।। * सूत्रका यह अर्थ भी होसकता है कि जो लोग क्रोबादि कषाथोंके आवेगमें आकर बिना विचारे कार्य करते हैं, पापारादि कार्यों में भामदनी और खर्च बराबर होता है । सम्पादक:-- | हारीत: प्रययौ समौ स्यातां यदि कार्यों विनश्यति । ततस्तोत्रेया कुर्वन्ति भूयोऽपि न त्यजन्तितम् ॥११॥ F रा - बहुकले शानि कृत्यानि स्वल्पभावानि चक्रतुः १ । महामुर्खेतमा बेन न निर्वेदं च ॥ १ ॥ शुभभाव कार्यानारम्भः कापुरुषाणाम्' इस प्रकार मु० व ६० कि० सू० प्रतियोंमें पाठ है, परन्तु अर्य-मेद कुछ नहीं । वर्ग:- कार्यशेषान् विधिन्वन्तो मशः का पुरुषाः स्वयं शुभं भाग्याम्यपि त्रस्ता [न कृत्यानि प्रकृति ] ॥१॥ पचका अब श्रमूत चूट (पूर्ण) परिवर्तन किया जाता, तब कहीं छन्दशास्त्रानुकूल होसकता था, परन्तु सं० टीकाकारके उद्धरणको ज्यों का त्यों सुरक्षित रखनेके अभिप्राय से केवल क्रियापद (पचक्रतुः ) का जो या परिवर्तन किया है और वाकीका ज्यों का त्यों संकलन किया सम्धीति किं कृषिमं कृष्यते' इसप्रकार मु० व ६० लि०० प्रतियोंमें पाठ है, परन्तु भर्थ भेद कुछ नहीं । | सम्पादक
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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