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________________ मन्त्रि-समुरेश internam e n.......... .........Arramine-000000000001 -पूर्व मनुष्यको मंत्रणाका ज्ञान धुणाक्षरम्यायके समान कदाचित् होजाता है, परन्तु सकरज-धुणाक्षरन्याय-घुण (कीड़ाविशेष) लकड़ीको धीरे २ खाता है, उससे इसमें विचित्र संजाती है, उनमेसे कोई रेखा कदाचित् अक्षराकार (क, ख-आदि अतरोंकी आकृतिवाली) होजाती शपण्याय' कहते हैं । उक्त प्रकरणमें जिस प्रकार घुणसे लकड़ी में अक्षरका बनना कदाचित् होता निरिणत नहीं, उसीप्रकार मुस्खे पुरुषसे मंत्रणाका मान भी कदाचित् भाग्योदयसे होसकता है, मा निश्चित व सदा नहीं हो सकता ॥३॥' है गुरु: विज्ञामने भी कहा है कि 'मूर्ख मनुष्यों को मंत्र (सलाह) का मान पुणापरन्यायके समान पारित होता है, परन्तु नियत न होनेसे उसे ज्ञान नहीं कहा जासकता था . मात्यानसे शूम्म मनकी कर्तव्य विमुस्खसा मनालाक लोधनभिवाशास्त्र मना किया पश्चः ॥४॥ -शास्त्रानसे शून्य जडात्मक मन ज्योति-रहित नेत्रके समान कितना कर्तव्य-बोध कर सकता ही कर सकता। सारांश यह है कि जिस प्रकार अन्धा पुरुष ज्योति-हीन नेत्रोंके द्वारा पद-पदादि नहींस सकता, उसीप्रकार जिस मनुष्यका मन शास्त्रज्ञानके संस्कारसे शन्य है, वह भी व्यका निश्चय नहीं कर सकता ।१४|| विद्वान् ने भी कहा है कि 'जिसप्रकार ज्योति-हीन बजु किसी भी घट-पटादि वस्तुको नहीं देख की इसीप्रकार शास्त्र मानसे शून्य' मन भी मंत्रणाका निश्चय नहीं कर सकता ॥१२॥ सम्पत्ति-प्राप्तिका उराय स्वामिप्रसादः सम्पद जनयुति न पुनराभिजात्यं पांडित्य या ||६|| ई-स्वामीकी प्रसन्नता सम्पत्तिको पैदा करती है, कुलीनता व विद्वत्ता नहीं। पति-भाषित ना ही विवाह और उच्य कुलका क्यों न हो, परन्तु यदि उससे उसका स्वामी प्रसन्म नहीं है, जो नापि धन प्राप्त मही होसकता ||६|| विद्या ने कहा है कि 'संसारमें बहुतसे कुलीन भौर विद्वान पुरुष दरि दिखाई देते हैं, किनर राजाकी रुपा है, वे मूर्ख व कुल-हीन होनेपर भी धनाव्य देखे जाते हैं ॥शा' पलामूखके स्वभावका दृष्टान्त द्वारा समर्थन हरकण्ठलग्नोऽपि कालकूटः काल एव ।।६।। - 3 चम्मू परिशाम जायसे मंजस'भवम् । स हि पुलावरन्यावो न तज्ज्ञान प्रकीर्वितम् ॥ मा-बाबोकरहित नेत्रपका किंचित पश्यति । तया शास्त्रविहीनं बम्मनो मंत्र न परपति १॥ -सीमा पपिडता दुःस्था रमन्ते बहवो जमाः। मूर्खः कुलविहीनारच धनाडमा राजपलबमा HD
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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