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________________ नीतिवास्यामृत .... - -. व विग्रह मादि-सम्बन्धी मंत्रणा करते हैं, उससे वे राजाके महान कार्य (संधि और विग्रह आदि पायगुण्य) को बिना क्लेश से सिद्ध कर डालते हैं। ॥१॥ उक्त वाक्यका दृष्टान्त द्वारा समर्थन न खलु तथा हस्तेनोत्थाप्यते ग्रावा यथा दारुणा ॥१॥ अर्थ-जिसप्रकार पृथ्योमें गद्दी हुई विशाल पत्थरकी चट्टान तिरछी लकड़ीके यन्त्र विशेषसे शीघ्र ही थोड़े परिश्रमसे उठाई जासकती है (स्थानसे हटाई जाती है.), उसप्रकार हाथोंसे महान् परिश्रम करनेपर मी नहीं उठाई जा सकती । इसीप्रकार मंत्रशक्तिसे महान कार्य भी, थोड़े परिश्रमसे सिद्ध होजाते हैं, बिना मंत्रणाके कदाऽपि सिद्ध नहीं होसकते ॥५१॥ हारीत' विद्वान ने कहा है कि 'राजा जिस कार्य (अप्राप्त राज्यकी प्राप्ति-आदि) को युद्ध करके अनेक कष्ट उठाकर सिद्ध करता है उसका वह कार्य मंत्र-शक्ति रूप उपायसे सरलवासे सिद्ध होजाता है, अतश्व उसे मंत्रियोंके साथ अवश्य मंत्रणा करानी चाहिये ॥२॥ जिस प्रकारका मंत्री राजाका शत्रु होता है स मंत्री शर्यो नृपेच्छयाऽकार्थमपि कार्यरूपतयाऽनुशास्ति ॥५२।। अर्थ-ओ मंत्री राजाकी इच्छासे-जसकी प्राज्ञाके अनुसार चलने के उद्देश्यसे--उसको अकर्तव्यका कसंख्यरूपसे उपदेश देता है, यह राजाका शत्रु है। सारांश यह है कि अकर्तव्यमें प्रवृत्त होनेसे राजाकी अत्यन्त हानि होती है, इसलिये अकसंख्यका उपदेश देनेवाले मंत्रीको शत्रु कहा गया है ।।२।। भागुरि विद्वान्ने कहा है कि 'जो मंत्री राजाको अत्तव्यका कर्तव्य और कर्तब्यका अकर्तव्य बसा देता है, वह मंत्री के रूपमें शत्र, है ।।१।।' मंत्रीका कर्तव्य वर स्वामिनो दःख न पुनरकार्योपदेशेन तद्विनाशः * ॥५३|| अर्थ-मंत्रीको राजाके लिये दुःख देना उत्तम है-अर्थात् यदि यह भविष्यमें हितकारक किन्तु इसया पहारीत:-पत् कार्य साधयेद् राजा कोशैः संग्रामपूर्षकैः । मंत्रण सुखसाध्मं तसस्माभित्र प्रकायेत् ॥१॥ २समा भागरिः-प्रहस्प कृत्यरूम च सत्यं चाकृत्यसंहिता निवेदयवि भूपस्य स वैरी मंत्रिरूपाक || वर स्वामिनो मरमावदुःखं न पुनरकार्योपदेशेन विनाशः' ऐसा मु० मू.प० मि० मूल प्रसिौपाठान्तर है। जिसका अर्थ यह है कि सन्ने मंत्रीका कर्तव्य है कि वह अपने स्वामीको सदा तात्कालिक कठोर परन्तु मषिप्यमें हिवकारक उपदेश दे । ऐसे अवसर पर राजाकी इच्छा के विरुद्ध उपदेश देनेसे कुछ हुए राजाके राससको .. मरण-संकट भी उपस्थित होजावे तो भी उत्तम है परन्तु राजाकी इखानुका अहितका उपदेश देकर इसे पतिहामि-पहुँचामा उसममाही। -सम्पादक
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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