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________________ A मुनियों द्वारा निश्चित होत थे, जिनके वचनों पर किसी को शंका ही न हो पाती थी। और उन सिद्धान्तो या नियमों का पालन राजा सहित नारे समाज को करना पड़ता था। शंमा का स्थान सिनिय नहीं रहना भाकि अधिभुनि विद्वानों की मानवागो स कवन वही आई निका सका ये नुसार एक प्रकार में समाज की प्रावात हात थे। राजनीनिक महाराज मनु की मनुस्मृतिमा अतिप्राचीन ग्रन्थ है जिसमें राजा तथा प्रजा के कर्तव्य एवं अधिकारों का निरूपण है और जिम आज भी-हजारों वर्षों के बाद भी प्राप्तवाणी समझा जाता है इसके अतिरिन मविप्रवर शुक्राचार्य आदि अन्य पियों ने भी अपने प्रन्थों में समाजव्यवस्था पर प्रकाश डालता है। इनके सिद्धान्तों को एक प्रकार में लिखित रूप में भारतीय कनयंशन कहा जा सकता है। जम्मृनियों द्वारा निमापित नियमों के उलङ्घन का माहम शक्तिशाली से शक्तिशाली राजा को भोन्ही हापाता था। अत: राजा पर इस प्रकार का नियंत्रशु किसी भी आधुनिक लोकसमाम अधिक काम करन वाया था। इसका प्रत्यन प्रमाण हमें 'विदेहाजनकराजा दशरथ, भगवान् राम' आदि उदाहरम मिलता है जिनका प्रादर्श अपना नब कुछ त्याग कर जनता जनार्दन को सेवा के जिय राजमुकुट धारण मारना था। भारत का राजा भगवान का प्रतिनिधि वनकर प्रज्ञा पर मनमाने अत्याचार करनवाला राजानती थारमारा श्रादर्शनासपिया। राजा हात हा भी त्यागीऋषि, जिसकी भारी वृत्तियां कही चितन में रमती थी, कि उसकी प्रजा अधिक से अधिक स्त्राव समृद्व केमही इसलिये राजा के लिये सिताजा पालक' प्रादि सम्मान मूचक शत्रहों का प्रयोग किया गया, किन्तु उसकी स्थिति की अनिर्यात कमा नही हानदी कि यह प्रजा पर अत्याचार कर सके । आचार्य कोटिल्य न राजा के लिये भी दण्ड का न्यवस्था की है। यह लिन्यता है - निषि व्यक्ति को दण्ड देने पर राजा को उस दण्ड स तीस गुना दण्ड दिया जाय और यह दएका धन जल में बहकर बरुणदेवता के नाम से ब्राह्मणां कीद दिया जाय । एमा करने से ठाक दण्ड देने के कारण उत्पन्न हुअा राजा का पाप शुद्ध हो जाता है । (का- अ. ४-१३॥ आज जनतंत्रवार तथा साम्यवाद का युग है।माम्यबाद का आधारभूत सिद्धान्न आविसमा. नंता है। उसका प्राथमिक तथा अन्तिम लक्ष्य रोटो कंवल राटी है । जनतंत्रवाद (आधुनिक) का आधार. भूत सिद्धान्त है राज्यसत्ता में जनता का हाथ' दोनो ही भौतिक सुख के चश्मे न जनता का सुख दखत है यही भाज के जीवन का चरम लय है, किन्तु भारतीय परम्परा इसके विम है। भारत ने. शपियों द्वारा नियन्त्रित भारत ने-कभी भी आर्थिक तथा भौतिक सिद्धि का चरम लक्ष्य नहीं माना। भूपियों ने सदैव सन्तोष, अरिग्रह तथा परहित का पाठ पढ़ाया। एसे याविक काल में सा साज विश्वमं है कटोव को व्यवस्था के पूर्ण रूप से असफल होने का एकमात्र कारता यह है कि इन कामना में वह पल, व प्रभाव, वह कतव्यभावनावही है जो समृद्धिकागे की बायो में था और त प्राधिकर Gसी समस्या विकट रूप धारण नही करता था। कोई आर्थिक संकट या अकाल पड़ने पर राजा तयात्रा पहले कि हात थेइलाजलेर खेती को निकज चड्न थ । राजा जनक नया अधान का प्रमा
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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