SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मन्त्रि-समुई श १६१ अर्थ:-जिन वीर पुरुषोंकि चित्त शत्रुओंको देख कर भयभीत होते हैं ललया शस्त्र-कारण जिसप्रकार व्यर्थ है, जानीप्रकार जिन विद्वान पुरुषोंक मन वादियों-विरुद्ध सिद्धान्सका समर्थन करनेवाले पुरुषों-को देखकर भयभीत होते हैं, उनका शास्त्रज्ञान भी निरर्थक है ॥१६॥ ____षादरायण' विद्वानने भी कहा है कि जिमप्रकार शस्त्र-विद्या में प्रवीगा योद्धा पुरुष याव शत्रुओं से डरता है, तो उसकी शस्त्रकला निरर्थक है, उसी प्रकार विद्वान पुरुष भी यदि वादियों के साथ शास्त्रार्थ-पादि करने से डरता है, तो उसका शास्त्रज्ञान भी निरर्थक है ॥१॥' जिस स्थिति में शस्त्र व शास्त्रज्ञान निरर्थक होता है : तच्छम्ब शाम्ब वात्मपरिभवाय यन्न हन्ति परं पां प्रसरं ॥२०॥ अर्थ-जिस वीर पुरुष का शम्त्र शत्रओं के बढ़ते हुए बंग-आक्रमण को नष्ट नहीं करता, उसका शस्त्र धारण करना उसके पराभव-पराजय (हार) के लिये है । एवं जिम विद्वान पुरुष का शास्त्रज्ञान वादियों के बढ़ते हुए वेग को नहीं रोकना, उसका शास्त्रज्ञान भी उसके पराजय का कारण होता है। निष्कर्षः-इसलिये चीर पुषको शस्त्रधारणका और विद्वान् पुरुष को शास्त्रज्ञानका क्रमशः उपयोग (शत्रु निमा और प्रबल युक्तियों द्वारा अपने सिद्धान्तका ममर्थन और परपत-खंडन आदि)करना चाहिये अन्यथा-सा न करनेसे उन दोनोंका पराजय अवश्यम्भावी है। ॥२०॥ नारद' विद्धानने भी कहा है कि जो योद्धा शत्रके बढ़ते हुए अाक्रमण को अपनी शस्त्र-कलाकी शक्तिसे नष्ट नहीं करता, वह लघुताको प्राप्त होता है। इसीप्रकार जो विद्वान वादियोंके बंगको अपनी विताकी राक्तिसे नहीं रोकता, यहभी लघुताको प्राप्त होता है ॥१॥ कायर व मूर्ख पुरुषमें मंत्री-आदि पदकी योग्यता: न हि गली वलीपर्दो भारकर्मणि केनापि युज्यते ।।२१।।। अर्थः-कोई भी विद्वान् पुरुष गायके बछड़े को बोझा ढोनेमें नहीं लगाता । भाषा:-जिमप्रकार:- बधाई को महान बोका ढोनेमें लगाने से कोई लाभ नही, उसीप्रकार कायर पुरुषको युद्ध करने के लिये और मुख पुरुषको शास्त्रार्थ करने के लिये प्रेरित करनेसे कोई लाभ नहीं होता। इसलिये प्रकरण में मंत्री को यद्धविद्या-प्रवीण व राजनीतिज्ञ होना चाहिये । कायर और मूर्ख परुष मंत्री परके योग्य नहीं । तशाच पादरायणः-पथा शस्त्रस्य शस्त्र पर्षे रिपुकसान भयात् । शास्त्रशस्य तथा सर्व प्रतिवादि भयात् भवेत् ॥ मतवस्त्र शत्वं वा, प्रात्मपरिभवाभावाय यन्न हस्ति परेषा प्रसरमा पट मु.व.लि. मू० प्रतियोमें बर्तमान है, जिसका अर्थ यह है कि जिसकी शस्थ और शास्त्रकना क्रमसः शन्न यो पगवियों के प्रमर (हमला और रिन) को मार नहीं कर सकती, उसकी वह सम्व-शास्त्रकमा भनुपयोगी झेनेमे उसके पराजय को नहीं रोक सकतीउससे उसको विजयसम्मी प्राप्त नहीं होमकती। सथान नारदः-शनोई वादिनो वाऽपि शास्त्रगंवायुभेन बा। विनामानं न हन्यायो म जयुमा बजे ।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy