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________________ १२४ * नीखियास्यास data-41Hniament भगवान् ऋषभदेव राज्यशासन कालमें पत्रिय लोग शस्त्रोंसे जीविका करने वाले शास्त्र धा. रण कर सेनामें प्रविष्ट होनेवाले-हुए सा विशद-विवेचनः प्राचार्यश्री'ने यशस्तिलकचम्पूमें लिखा है कि प्राणियोंकी रक्षा करना क्षत्रियोंका महान् धर्म है परन्तु निरपराध प्राणियोंके वध करनेसे वह नष्ट हो जाता है। . ___ इसलिये जो युद्ध भूमिमें लड़ाई करने तत्पर हो अथवा जो राष्ट्रका कटक-प्रजाको पीड़ा पहुँचाने वाला बन्यायी-दुष्ट-हो उसीके ऊपर क्षत्रिय वीर पुरुष शास्त्र उठाते हैं उनका निग्रह करते हैं। गरीब, कमजोर और धार्मिक शिष्ट पुरुषोंपर नहीं ॥१॥ अवध निरर्थक जीय हिंसाका त्याग करनेके कारण क्षत्रिय वीर पुरुषोंको जैनाचार्योंने प्रोपार्मिक-माना है । इन्ही क्षत्रिय वीर पुरुषोंके वंशमें अहिंसा धर्मके मूल-प्रवर्तक और उनके अनुयायी महापुरुषों का जन्म हुआ है। क्योंकि २४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, । नारायण, प्रतिनारायण और । बलभद्र ये ६३शलाका-पुरुष क्षत्रिय थे ।इन सभीने अपने २ राज्यशासन कालमें उक्त क्षत्रियोंके सत्कतेब्यो -प्राणियोंकी रक्षा, शस्त्रधारण और शिष्टपालन आदि-का पालन किया था। : श्रीषेण राजाने जिन्नदीक्षा धारणको प्रयाण-वेलामें अपने युवराज वीरपुत्र श्रीवर्मा-चन्द्रप्रम भगवान् की पूर्वपर्याय-फो निम्न प्रकार क्षात्रधर्मका उपदेश दिया था जिसे वीरनन्दि-प्राचार्यने' चन्द्रप्रभचरित्रमें ज्ञलित और मनोहारिणी पद्यरचनामें गुम्फित किया है प्राकरणिक और उपयुक्त होनेके कारण उसका निर्देश करते हैं: हे पुत्र ! तुम विपत्ति-रहित या जितेन्द्रिय और शान्सशील होकर अपने तेज-सैनिक शक्ति और खजानेकी शक्ति से शत्रुओंके उदयको मिटाते हुए समुद्रपर्यन्त पृथ्वी-मंडलका पालन करो ॥१॥ सत्रियाः शस्त्रजीवित्वमनुभूय तदाऽभवन् !! प्रादिगण पर्व । , तथा च यशसिल के सोमदेवमूरि:मय-भूनसंरक्षणं हि क्षत्रियाणां महान् धर्मः, स च निरपराधप्राणिष निराकृतः स्वात् । स्य-य: शस्त्रवृतिः समरे रिपुः स्यात् । वकण्टको मा निजमएडजस्म || प्रस्थाणि सव नृपा क्षिपन्ति । न.दीनकानीनशुभाशयेषु ! २ तथा च वीरनन्दि-प्राचार्य:भवानपास्तव्यसनो निजेन थाम्नाम्धिमयौदामिमामिदानीम् । माहीमशेषामपहस्तितारिखयोदया पाया प्रशान्तः (शेष अगले पर
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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