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________________ * नीविवाक्यामृत १२५ भगवजिनसेनाचार्य ने भी प्राणों के धार्मिक और जीविकोपयोगी कर्तव्योंका निम्नप्रकार निर्देश किया है कि महाराज भरतने उपासकाभ्ययन नामके अङ्गाके आधारसे उन प्राणों के लिये देवपूजा, वार्ताविशुद्ध परिणामसे कृषि और ध्यापार करना, पात्रोंको दान देना, शास्त्र-स्वाध्याय, संयम-सदापार और वपश्चयों करना इन ६ छह सत्कर्तव्योंका उपदेश दिया है ॥१॥ हारीत विद्वानने भी कहा कि 'ईशातिर i-ATEतारत गाना-पढ़ाना, पानदेनामेना ये ६ कत्र्तव्य ब्राह्मणों के हैं ॥२॥ क्षत्रियोंका कर्तव्यनिर्देश: भूतसंरक्षर्ण शस्त्राजीवनं सत्पुरुषोपकारो दीनोद्धरणं रणेऽपलायन चेति पत्रियाणाम् ||८|| अर्थः-प्राणियोंकी रक्षाकरना, शस्त्रधारण करके जीवन-निर्वाह करना, शिष्ट पुरुषोंकी मलाई करना, अनाथ-अन्धे, लूले-लैंगड़े और रोगो भादि दीनपुरुषों का उद्धार करना और युद्धसे न मागना ये क्षत्रियोंके कर्तव्य हैं। ___ पाराशर विद्वान्ने भी कहा है कि 'सत्रिय वीरपुरुषको शस्त्र धारण कर उससे जीवन-निर्वाह करते हुए-सदा हिरणों की रक्षा, मनाथोंका उद्धार और सजन पुरुषोंकी पूजा-भलाई करनी चाहिये ॥शा भगवजिनसेनाचार्य ने कहा है कि इतिहासके आदि कालमें आदिममा भगवान् ऋषभदेव तीर्थरने अपने हाथोंमें शस्त्र-धारण करनेवाले ऋत्रिय धीर पुरुषोंको अन्यायी (प्रातवायी) दुष्ट पुरुषों से प्रजाकीरता करनेके लिये नियुक्त किया था II 1 तथा प भगव जिनसेनाचार्य:इच्या वाती च ६ति स्वाध्यायं यमं तपः । अतोपासकलस्वात् स तेभ्या समुगादिशत् ॥१॥ प्रादिपुराण पर्व १८ लोक २४ । के माता पिशुवस्या स्यात् म्यादीनामनुमितिः संयमो मतभारणं-मादिपुराणे २ सपा हारीतापरन पाजन चैप पठन पाठन तथा। रानं प्रतिमहोपेत पटकमाणि विन्मना ! ३समा च पाराशर चषियेण मृगाः पाण्याः स्वातेन नित्ययः । मनापोटरयं कार्य erनाप्रपूजनम् ||१५ तपा च भगवबिजनसेनाचार्य:पत्तत्राणे निका हिचत्रियाः शवपाध्ययः ।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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