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________________ 5: *1001101vooomnony * नीतिवाक्यामृत - अथ चान्वीक्षिकी समुद्देशः । श्रम अध्यात्मयोग आत्म ध्यान का लक्षण निर्देश करते हैं:-- श्रात्ममनोम रुचत्वसमतायोगलक्षणो द्यध्यात्मयोगः || १ || + अर्थ – आत्मा, मन, शरीर में वर्तमान प्राण वायु- कुम्भक (प्राणायामकी शक्तिसे शरीरके मध्य में प्रष्टि की बाली (उक्त विधिसे पूर्ण शरीरमें प्रविष्ट की जाने वाली हवा) और रेचक (उक्त विधिसे शरीर से बाहर की जाने वाली षायु) तथा पृथिवी, जल, अग्नि और वायु आदि तत्वोंकी समान और दृढ़ निश्चलता — स्थिरता को अध्यात्मयोग - आत्मध्यान (धर्मध्यान) कहते हैं। ऋषिपुत्रक' विद्वान्ने कहा है कि 'जिससमय आत्मा, मन और प्राण वायुकी समानता - स्थिरताहोती है उससमय मनुष्यको सम्यग्ज्ञानका जनक अध्यात्मयोग प्रकट होता है ॥ १ ॥ १०१ व्यास ने भी लिखा है कि 'समस्त इन्द्रिय और मनकी चंचलता न होने देना ही योग-ध्यानकेवल पद्मासन लगा कर बैठना वा नासाग्र-दृष्टि रखना योग नहीं है ॥ १ ॥ उक्त अध्यात्मयोग--धर्मध्यान- के शास्त्रकारोंने' चार भेद निर्दिष्ट किये हैं। पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ और रूपातीत । fireer ध्यानमें विवेकी और जितेन्द्रिय मनुष्यको पार्थिवी, आग्नेयी, श्वसना, वारुपी और तत्त्ररूपबत्ती इन पांचधारणाओं- ध्येय तत्वों का ध्यान दुःखोंकी निवृत्तिके लिये करना चाहिये । पार्थिवी धारणा में मध्यलोकगत स्वयंभूरमण नाम समुद्रपर्यन्त तिर्यग्लोकके बरावर, निःशब्द, वरनों से रहित और वर्फके सदृश शुभ्र ऐसे क्षीरसमुद्रका ध्यान करें। उसके मध्य में सुन्दर रचना-युक्त अमित दीतिले सुशोभित, पिघले हुए सुवर्णके समान प्रभायुक्त, हजार पत्तोंवाला, जम्बूद्वीपके बराबर और मनरूपी भ्रमरको प्रमुदित करनेवाला ऐसा कमलका चितवनकरे। तत्पश्चात् उस कमलके मध्य में सुमेरुपर्वतके .: समास पीतरंगको कान्तिसे व्याप्त ऐली कर्णिकाका ध्यान करे। पुनः उसमें शरत्कालीन चन्द्रके समान शुभ्र और ऊँचे सिंहासनका चितवनकर उसमें आत्मद्रव्यको सुखपूर्वक विराजमान, शान्त और क्षोभरहित, १ तथा ऋषिपुत्रकः— आत्मा मनो मरुत्तरयं सर्वेषां समता यदा 1 तदा त्वध्यमयोगः स्याभरायां ज्ञानदः स्मृतः ॥ १ ॥ २ सभा च व्यास: न पद्मासनतो योगो न च नासामवीक्षयात् । मनसश्चेन्द्रियाणां च संयोगो योग उच्यते ॥ १ ॥ ३ तथा च शुभचन्द्राचार्य: (शाना ) पिंडस्थं पदस्थं च रूपस्थ रूपवर्जितम् । ध्यानमाख्या भव्यराजीव भास्करः ॥ १
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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