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________________ परिशिष्ट ६ कथाएं देखा। उन्होंने कहा - ' शरणागत का वध नहीं किया जाता।' यह सुनकर चोर सेनापति ने उस भ्रातृघातक को ससम्मान विसर्जित कर दिया। ४. क्रोध का दुष्परिणाम ६२३ एक ब्राह्मण के पास एक बैल था। एक बार वह बैल को लेकर खेत जोतने के लिए गया। खेत जोतते हुए बैल थक गया और वहीं गिर गया। असमर्थता के कारण वह उठ नहीं सका। ब्राह्मण ने उसे चाबुक से मारा। चाबुक टूट गया लेकिन बैल उठ नहीं सका। अन्य कोई चीज न देखकर वह मिट्टी के ढेलों से बैल को मारने लगा। इस प्रकार एक-एक करके चार केदारों के ढेलों से उसे मारा फिर भी वह नहीं उठा तो ढेलों से मारते-मारते बैल के चारों ओर ढेलों का ढेर हो गया और वह बैल भर गया। वह ब्राह्मण गोहत्या के पाप की विशुद्धि के लिए अन्य ब्राह्मणों के पास उपस्थित हुआ । उन्हें सारी घटना सुनायी। ब्राह्मण ने आत्मालोचन करते हुए कहा कि मुझे इतना क्रोध आया कि अभी भी क्रोध शांत नहीं हुआ हैं। ब्राह्मणों ने सारी बात सुनकर कहा- 'तुम अतिक्रोधी हो अतः तुम्हारी शुद्धि नहीं हो सकती। हम तुम्हें प्रायश्चित्त नहीं देंगे। ऐसा कह उसे जाति से बहिष्कृत कर दिया तथा वह लोगों की दृष्टि में निन्दा और घृणा का पात्र बन गया। ५. दिशा ही बदल गई (अत्वंकारीभट्टा ) क्षितिप्रतिष्ठित नगर में जितशत्रु नामक राजा राज्य करता था। उसकी पटरानी का नाम धारिणी और मंत्री का नाम सुबुद्धि था। उसी नगर में धन नामक श्रेष्ठी निवास करता था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा था। सेठ के आठ पुत्रों के पश्चात् एक पुत्री हुई। सेठ ने उसका नाम भट्टा रखा। वह पारिवारिक जनों की अत्यन्त दुलारी थी अतः माता-पिता ने सभी से कह रखा था कि वह जो कुछ भी करे लेकिन इसे कोई 'चूं' तक न कहे, रोक-टोक न करे अत: उसका नाम अच्छेकारिय भट्टा - अत्वंकारी भट्टा पड़ गया। भट्टा बहुत रूपवती थी अतः अनेक लोग उससे विवाह करने के इच्छुक थे। जब वह यौवन की दहलीज पर पहुंची तो उसने संकल्प लिया कि वह उसी व्यक्ति को अपना जीवन साथी बनाएगी जो उसके सभी आदेशों का पालन करेगा तथा अपराध होने पर भी कुछ नहीं कहेगा। एक बार उसके लावण्य से मोहित होकर मंत्री सुबुद्धि उसके साथ विवाह करने को तैयार हो गया। मंगल - बेला में दोनों विवाहसूत्र में बंध गए। मंत्री सदा उसकी आज्ञा का पालन करने लगा । मंत्री प्रतिदिन राजकार्य समाप्त कर एक प्रहर रात बीतने पर घर लौटता था। भट्टा ने मंत्री से कहा कि आप सायं घर शीघ्र आया करें। पत्नी के कहे अनुसार मंत्री शीघ्र ही राज्य के कार्य से निवृत्त होकर घर लौट आता था। एक दिन राजा ने चिंतन किया कि यह मंत्री इतनी जल्दी घर क्यों चला जाता है ? राजा के चिन्तन को जानकर अन्य राजदरबारियों ने कहा--'महाराज ! मंत्री बड़ा पत्नीभक्त है अतः वह उसकी आज्ञा का भंग नहीं कर सकता।' एक दिन राजा ने कारणवश कुछ काम बताकर मंत्री को वहीं रोक लिया। मंत्री देरी से १. दनि ९९, १००, द प. ६१, निभा ३९८६, ३१८७ चू. पू. १४७, १४८1 २. दनि १०५ दचू प. ६२. निभा ३१९३ चू. पू. १५० १
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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