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________________ नियुक्तिपंचक __एक बार पर्युषण काल में उद्रायण ने उपवास किया। उसने रसोइए को भेजकर प्रद्योत को पूछवाया कि आज तुम्हारे लिए क्या बनवाया जाए? प्रद्योत से जब उसकी इच्छा पूछी गयी तो उसका भन आशकिरा हो गया। उसने सोचा आज तक मुझसे यह प्रश्न नहीं पूछा गया आज ही यह बात क्यों पूछो गयी? निश्चित ही राजा विष मिश्रित भोजन देकर मुझे मारना चाहता है । तत्काल उसके मन में चिंतन उभरा कि संदेह नहीं करना चाहिए अत: इसी से पूछू कि वास्तविकता क्या है? पूछने पर रसोइए ने उत्तर दिया कि राजा श्रमणोपासक है अतः पर्युषण पर्व की आराधना के लिए उपवास किया है, इसलिए आपकी इच्छा जानने के लिए मुझे भेजा है। यह सुनते ही प्रद्योल को स्वयं पर बहुत ग्लानि हुई और वह अपने आपको धिक्कारने लगा कि आज मुझे पर्युषण का दिन भी याद नहीं रहा। फिर उसने कहा कि मैं भी भ्रमणोपासक हूँ अतः राजा से कहना कि मैं भी आज उपवास करूंगा। रसोइए ने जाकर सारी बात उद्रायण के सामने प्रकट की। आत्मचिंतन करते हुए उद्रायण ने सोचा-'मैंने अपने सार्मिक को बंदी बना रखा है अत: आज मैं उसे मुक्त किए बिना शुद्ध सामायिक नहीं कर सकता।' राजा उसी क्षण प्रद्योत के पास गया और उसके सारे बंधन खोलकर क्षमायाचना की। ललाट पर लिखित शब्दों को ढंकने के लिए उद्रायण ने प्रद्योत के सिर पर एक स्वर्णपट्ट बंधवा दिया। उसी दिन से राजा प्रद्योत पट्टबद्ध राजा के रूप में प्रसिद्ध हो गया। ३. दरिद्र किसान और चोर सेनापति किसी गांव में उत्सव के अवसर पर धनवानों के घर खीर बनी। खीर देखकर एक गरीब के बच्चे भी खीर खाने का आग्रह करने लगे। बच्चों की इच्छा देखकर वह दरिद्र व्यक्ति मांग कर चावल और दूध लाया तथा अपनी पत्नी को खीर बनाने के लिए कहा। वह सीमावर्ती गांव था। उस दिन चोरों को सेना वहां आ गयी। चोरों ने गांव को लूटना प्रारम्भ कर दिया। वे उस दरिद्र के घर भी आए और पात्र सहित खीर को ले गए। उस समय वह गरीब खेत पर गया हुआ था। खेत से घास आदि काटकर जब वह वापिस आया तो उसने चिंतन किया कि आज खीर बनी है अत: बच्चों के साथ ही खाना खाऊंगा। लेकिन जब वह घर पहुंचा तो बच्चों ने रोते हुए चोरों द्वारा खोर ले जाने को सारी बात बतायी। क्रोधावेश में घास के गट्ठर को वहीं छोड़कर वह चोरों की पल्ली में गया। वहां उसने सेनापति के सामने खीर का पात्र देखा। उस चोर तो पुन: गांव लटने चले गए थे। सेनापति अकेला बैठा था। उसने तलवार से सेनापति का सिर काट लिया । नायक की मृत्यु पर चोर असहाय हो गए लेकिन उस समय मृतककृत्य करके सेनापति के छोटे भाई को अपना मुखिया बना दिया। मुखिया बनने पर उसकी मां, बहिन और भाभो व्यंग्य में कहने लगी कि तुम्हारे जोवन को धिक्कार है,जो तुम अपने भाई के शत्रु से बदला लिए बिना सेनापति बन गए हो। परिजनों की बात सुनकर क्रोध में आकर वह चोर सेनापति उस गरीब को जीवित ही पकड़ कर ले आया। उसके हाथों में बेड़ियां डालकर परिजनों के सम्मुख उसे प्रस्तुत किया। चोर सेनापति ने तलवार हाथ में लेकर गरीब को संबोधित करते हुए कहा-'बोल, तेरा वध कहां करूं? तू मेरे भाई का घातक है।' गरोब ने दीन भाषा में कहा-'जहां शरणागत मारे जाते हैं, वहीं मुझे मारो।' उसके उत्तर को सुनकर सेनापति ने चिंतन किया कि शरणागत तो अवध्य होते हैं। उसने अपने परिजनों की ओर १. दनि ९५-९८, निभा ३१८२-८५, चू.पृ. १४०-४७ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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