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________________ ६०८ नियुक्तिपंचक ९. आचार्य की तीक्ष्ण आज्ञा एक मुनि चारह वर्ष को संलेखना कर आचार्य के पास अनशन की आज्ञा लेने आया। आचार्य ने कहा-'कुछ काल तक और संलेखना करो।' साधु कुद्ध हो गया। उसने अपनी अंगुली को तोड़ कर दिखाते हुए कहा-'मेरे में क्या दोष है?' आचार्य बोले कि मेरे कहते ही तुमने अंगुली तोड़ दी, यही दोष है। देखो, एक राजा था। उसकी आँखें निस्पन्द रहती थीं। पलकें स्थिर रहती थीं। वैद्यों ने चिकित्सा की पर आंखें स्वस्थ नहीं हुईं। एक दिन एक वैद्य आकर बोला-'राजन्! मैं आपको स्वस्थ कर दंगा यदि आप वेदना को सहन कर सकें तथा वेदना से पीड़ित होकर मेरी घात करने की आज्ञा न दें। राजा ने इसे स्वीकार कर लिया। वैद्य ने चिकित्सा को। राजा भयंकर वेदना से अभिभूत हो गया। उसने जैद्य को मार डालन को आज्ञा दे दी। वह राजा की तीक्ष्ण आज्ञा थी। कुछ क्षणों बाद वेदना शांत हुई और राजा को आंखें स्वस्थ हो गई। राजा ने वैद्य की प्रशंसा की और अनेक उपहार देकर उसे प्रसन्न किया। इसी प्रकार आचार्य की प्रेरणात्मक आज्ञा पहले तीक्षण लगती है किन्तु परमार्थत: वह शीतल होती है।' १०. द्रव्यशय्या एक अटवी में उत्कल और कलिंग नामक दो भाई रहते थे। वे चोरी से अपना निर्वाह करते थे। उनकी भगिनी का नाम वल्गुमती था। एक बार वहां गौतम नामक नैमित्तिक आया। दोनों भाइयों ने उसका स्वागत-सत्कार किया। वल्गुपती ने कहा-'मुझे लगता है कि इस नैमित्तिक का यहां रहना निरापद नहीं है। यह कभी न कभी इस पल्ली के विनाश का कारण बनेगा, इसलिए यह उचित है कि इसको यहां से निकाल दिया जाए। भगिनी की बात मानकर भाइयों ने उस नैमित्तिक को वहां से निकाल दिया। नैमित्तिक गौतम वल्गुमती पर रुष्ट हो गया। उसने प्रतिज्ञा की कि मेरा नाम गौतम नहीं है यदि मैं इस बल्गुमती के पेट को चीर कर उसके शव पर न सोऊं । वह गौतम वहाँ की भूमि में सरसों के दाने बो कर चला गया। वर्षाकाल में सरसों का पौधा विकसित हुआ। गौतम ने किसी दूसरे राजा को प्रेरित करके उस पल्ली को लूट लिया और पूरी पल्लो को जला डाला । गौतम ने वल्गुमती के पेट को चीर डाला। उसके प्राण अभी अवशिष्ट थे। वह उस वल्गुमती की देह पर सो गया। यह सचित्त द्रव्य शय्या है। सूत्रकृतांग-नियुक्ति की कथाएं १. अभयकुमार बंदी बना महाराज चंडप्रयोल अभयकुमार को बंदी बनाना चाहते थे। उन्होंने इस कार्य के लिए एक गणिका को 'ना । गणिक ने सारी योजना बनाई। इस कार्य के लिए उसने शहर की दो सुन्दर और १. आनि.२८६. अटी.. १७६ । २. आनि.३२३, आटी.पृ. २४०
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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