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________________ परिशिष्ट ६ : कथाएं ६०७ लिए प्रविष्ट हुआ। बालमुनि को बद चरा बताया गया। उसने समस्या की पूर्ति करते हुए कहा खंतस्स दंतस्स जिइंदियस्स, अज्झप्पजोगे गयमाणसस्स। किं मज्ज्ञ एएण विचिंतिएणं, सकुंडलं वा वयणं न व ति॥ इस गाथा को सुनकर राजा मुनि की शांति और वीतरागता से बहुत प्रसन्न हुआ। राजा ने बालमुनि को निवेदन किया कि आप मुझे धर्म की शिक्षा दें। बालमुनि ने दो मिट्टी के गोले भीत को और फेंके। राजा ने जिज्ञासा की कि इसका तात्पर्य क्या है? मुनि ने राजा को प्रतिबोधित करते हुए कहा-'राजन् ! मिट्टी के दो गोले सूखे और गीले को यदि भीत पर फेंका जाए तो गीला वहां चिपक जायेगा लेकिन सूखा गोला वापिस नीचे गिर जाएगा। इसी प्रकार कामभोगों के कीचड़ से जिसका मन आर्द्र है, वह कर्म-परमाणुओं को निरन्तर ग्रहण करता रहता है। इसके विपरीत जो वीतराग है, वह सूखे गोले की भांति कर्मरजों से लिप्त नहीं होता। धर्म का मर्म समझकर राजा ने श्रावकव्रत स्वीकार किए। धर्मबोध देकर मुनि वापिस लौट गए। उसी समय मंत्री रोहगुस ने राजा से कहा-'राजन् ! जितने भी अन्य धर्मावलम्बियों ने समस्या-पर्ति की. उन सबके चित्त विक्षिप्त थे। किसी का भिक्षा के कारण तथा किसी का उपासिका के कारण क्योंकि उनकी वीतरागता की साधना नहीं सधी थी। जैन साधु वीतरागता की साधना करते हैं, परमार्थतः यही मोक्ष का मार्ग है।' राजा को अपने प्रश्न का समाधान मिल गया।' ६. आर्य वज्र का अनशन एक बार आर्य वज्र स्वामी अपने कानों पर झूठ का गांठिया रखकर भूल गए। उन्हें अपने प्रमाद की अवगति हुई। उन्होंने जान लिया कि मरण सन्निकट है। वे उस समय शारीरिक शक्ति से सम्पन्न थे फिर भी उन्होंने "रथावर्त शिखरिणी" नामक प्रायोपगमन अनशन स्वीकार कर पंडितमरण का वरण कर लिया। ७. आर्य समुद्र का अनशन आर्य समुद्र शरीर से कृश थे। जब उन्होंने देखा कि वे जंघाबल से क्षीण हो गए हैं तथा शरीर से जो लाभ होना चाहिए वह नहीं हो रहा है तन्त्र उन्होंने शरीर को छोड़ने की इच्छा से गच्छ में ही उपाश्रय के एक निश्चित स्थान में प्रायोपगमन अनशन स्वीकार कर लिया। ८. आचार्य तोसलि का अनशन तोसलि देश में पैंसे बहुत होती थीं। एक बार आचार्य तोसलि वन्य भैंसों से उपद्रुत हुए। उनसे छुटकारा न देखकर आचार्य ने चारों आहार का परित्याग कर दिया और व्याघातिम मरण को प्राप्त किया। १. आनि.२२८-३४, आटी.पृ. १२५ । २. अनि.२८३, आटी-पृ. १७५ / ३. आनि.२८४. आटी.पृ. १७५ । ४. आनि.२८५, आटी.पृ. १७५
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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