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________________ परिशिष्ट ६ : कथाएं ५३५ के दानों को पृथक् कर पाएगी? दिव्यप्रसाद से वह वृद्धा दानों को पृथक कर भी ले परन्तु पुनः मनुष्य जन्म की प्राप्ति दुष्कर है। २९. चूत एक राजा था। उसका सभामंडप एक सौ आठ खंभों पर आधृत था। एक-एक खंभा एक सौं आठ कोणों से युक्त था। एक बार राजकुमार का मन राज्य-लिप्सा से आक्रान्त हो गया। उसने सोचा-'राजा वृद्ध हो गया है अत: उसे मारकर राज्य ग्रहण कर लूंगा।' अमात्य को यह बात ज्ञात हो गयी। उसने राजा को इस बात की अवगति दी। राजा ने सोचा- लोभ से आक्रान्त व्यक्ति के लिए कुछ भी अकरणीय नहीं होता। राजा ने अपने पुत्र को बुलाकर कहा-'हमारे वंश की परम्परा है कि जो राजकमार राज्य -प्राप्ति के अनक्रम को सहन नहीं करता टसे जुआ खेलना होता है और उस जुए को जीतने पर हो उसे राज्य प्राप्त हो सकता है। जीतने का क्रम यह है कि जुए में एक दांव तुम्हारा होगा और शेष दांव हपारे होंगे। यदि तुम एक दांव में एक सौ आठ खंभों के एक एक कोण को एक सौ आठ बार जोत लोगे तो राज्य तुम्हारा हो जाएगा।' रेसा होना ही है.किरी यति देगे से ऐसा हो जाए और राजकुमार जीत जाए तो भी विनार मनुष्य जन्म पुनः प्राप्त होना अत्यन्त दुष्कर है। ३०. रल एक वृद्ध वणिक् के पास अनेक रत्न थे। उसी नगर में अन्य अनेक कोट्याधीश वणिक् जनक मकानों पर पताकाएं फहराती थीं। उस वणिक के घर पर पताकाएं नहीं फहराती थी। एक बार वृद्ध देशान्तर चला गया । वृद्ध के जाने पर पुत्रों ने सारे रत्न विदेशी व्यापारियों को बेच डाले। पुत्र खुश थे कि हमारे घर पर भी पताकाएं फहरेंगी। वृद्ध देशान्तर से आया और रत्नों के विक्रय की बात सुनकर चिंतित हो गया। उसने पुत्रों का डांटा और कहा -'बेचे हुए सारे रत्न शीघ्र ही वापिस लेकर आओ।' पुत्र परेशान हो गए, क्योंकि उन्होंने सारे रत्न परदेशी व्यापारियों को बेचे थे। व्यापारी फारस आदि देशों में वापिस लौट गए थे। पुत्र रत्नों को एकत्रित करने इधर-उधर घूमने लगे। जैसे व्यापारियों से रत्न एकत्रित करना असंभव था वैसे ही मनुष्य जन्म पुन: प्राप्त करना असंभव ३१. स्वप्न उज्जयिनी नगरी में सभी कलाओं में कुशल, अनेक विज्ञान में निपुण, उदारचित्त, कृतज्ञ, शूरवीर, गुणानुरागी, प्रियवादी, दक्ष तथा रूप-लावण्य से युक्त मूलदेव नामक राजपुत्र रहता था। वह घृत न्यसन के कारण पिता द्वारा अपमानित होकर पाटलिपुत्र से भ्रमण करता हुआ उञ्जयिनी आया। उज्जयिनी में गुटिका के प्रयोग से वामन रूप बनाकर, वेश परिवर्तन कर विचित्र कथाओं, गंधर्व आदि कलाओं तथा अनेक कौतुकों से वह लोगों को विस्मित करने लगा। लोगों में उसकी बहुत प्रसिद्धि हो गई। १. उनि.१६१, उसुटी.प. ५९। २. उनि.१६१, उसुटी.प. ५९। ३. उनि.१६१, उसुटी प. ५९ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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