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________________ नियुक्ति साहित्य : एक पर्यवेक्षण ६. ९ इस एक गाथा में तीन प्रश्नोत्तरों का समाहार हो गया है। माधुकरी भिक्षा के प्रसंग में दशवैकालिक नियुक्ति में भी अनेक महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरों का समाहार है। उत्तराध्ययननियुक्ति गा. ६९ में नौ प्रश्नों का समाहार संक्षिप्त शैली का उदाहरण है। कहीं-कहीं नियुक्तिकार ने ऐसे सैद्धान्तिक प्रश्नों का संकलन किया है. जिनके उत्तर एक समान हों। आचारांगनियुक्ति में एक ही गाथा में चार प्रश्नों का समाहार है, पर उनके उत्तर एक समान हैं। जैसे— • एक समय में पृथ्वीकाय से कितने जीवों का निष्क्रमण होता है ? • एक समय में पृथ्वीकाय में कितने जीवों का प्रवेश होता है ? • एक समय में पृथ्वीका में परिणत जीव कितने हैं? • उनकी कायस्थिति कितनी है ? इन चारों प्रश्नों का उत्तर है— असंख्येय लोकाकाश प्रदेश परिमाण। कहीं-कहीं पहेली के रूप भी प्रश्न उपस्थित किए गए हैं। नियुक्तिकार ने व्याख्या में संक्षेप और विस्तार- इन दोनों शैलियों को अपनाया है। एक ओर सूत्रकृतांग के 'वीरत्थुई' जैसे महत्त्वपूर्ण अध्ययन पर मात्र तीन नियुक्ति गाथाएं लिखी हैं तो दूसरी ओर 'उत्तराध्ययननियुक्ति में संजोग' शब्द पर लगभग ३४ गाथाएं हैं। अनेक स्थलों पर तो अत्यंत महत्त्वपूर्ण विषयों को बिना व्याख्यात किए ही छोड़ दिया है। जैसे— दशाश्रुतस्कंध में आचार विषयक अनेक महत्त्वपूर्ण विषय हैं, लेकिन इसकी नियुक्ति अत्यंत संक्षिप्त है। इसी प्रकार उत्तराध्ययन मूल सूत्र में करीब २००० गाथाएं हैं, जबकि उसकी निर्युक्ति गाथाएं ५५४ ही हैं, जिनमें १०० से ऊपर गाथाए केवल निक्षेपपरक हैं। सब अध्ययनों की निक्षेपपरक गाथाएं प्राय: एक समान हैं। प्रत्येक अध्ययन का एक ही भाषा में निक्षेप किसी मंदबुद्धि छात्र के लिए तो उपयोगी हो सकता है पर व्युत्पन्न छात्र के लिए इसकी कोई उपयोगिता प्रतीत नहीं होती। संक्षिप्त शैली के उदाहरण के रूप निम्न गाथा को प्रस्तुत किया जा सकता है, जिसमें एक ही गाथा में चार दर्शनों का उल्लेख बहुत कुशलता से किया गया है— अस्थि त्ति किरियवादी वदंति मत्थि त्ति अकिरियवादी य । अण्णाणी अण्णाणं, विणइत्ता desवादी | | ( सून ११८ ) नियुक्तियों की रचना - शैली लगभग एक समान है। नियुक्तिकार ने जिस ग्रंथ पर नियुक्ति लिखी है, उस ग्रंथ के नाम की सार्थकता और मूलस्रोत पर विचार करके उसके अध्ययनों की संख्या एवं उनके नाम प्रस्तुत किए हैं। उसके पश्चात् समस्त ग्रंथ के अध्ययनों का संक्षिप्त विषयानुक्रम सूचित किया है। फिर प्रत्येक अध्ययन के नामगत शब्दों की व्याख्या करके अध्ययनगत महत्त्वपूर्ण शब्दों की व्याख्या प्रस्तुत की है। मूलतः नियुक्तिकार ने अध्ययनगत नाम के शब्दों की व्याख्या अधिक की है, जैसे-दशवैकालिकनियुक्ति में प्रथम एवं द्वितीय अध्ययन के अलावा अध्ययन के नामगत शब्दों की ही व्याख्या अधिक है। मूलसूत्र की गाथा में आए शब्दों की व्याख्या कम है । दशवैकालिक के छठे अध्ययन का मूल नाम 'महायारकहा' प्रसिद्ध है लेकिन इसका दूसरा नाम 'धम्मत्थकाम' भी मिलता है। नियुक्तिकार ने १. दशनि २४ - १०४ २. आनि १० ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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