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________________ परिशिष्ट ६ : कथाएं १६. याचना परीषह द्वारिका नगरी देवनिर्मित और स्वर्णमयी थी। वह सब प्रकार से समृद्ध थी। वहां अर्द्धभरत का चक्रवर्ती वासुदेव राजा राज्य करता था। उसके दो भाई थे-बलदेव और जराकुमार । वे दोनों उससे ज्येष्ठ थे। उनके पिता वसुदेव थे। उनकी पत्नी जरा से जराकुमार उत्पन्न हुआ। शाम्ब, प्रद्युम्न आदि सभी कुमार साढ़े तीन करोड़ कुमारों के साथ सांसारिक भोगों का अनुभव करते हुए राज्य का उपभोग करते थे। एक बार सर्वज्ञ अरिष्टनेमि भगवान् भव्य लोगों के उद्धार हेतु वहां आए। देवताओं ने समवसरण की रचना की। चारों जाति के देव. यादव और वासुदेव भी भगवान् के दर्शनार्थ आए। भगवान् ने धर्म को देशना दो। धर्मकथा की समाप्ति पर वासुदेव ने पूछा-'धन, स्वर्ण, रत्न, जनपद, रथ और घोड़े से समृद्ध देवनिर्मित, यादवकुल को इस द्वारिका नगरी का किससे और किस निमित्त से विनाश होगा?' भगवान् ने कहा-'यहां द्वीपायन नाम का परिव्राजक है। वह मद्यपान में उन्मत्त शाम्ब आदि राजकुमारों से अपमानित होने पर द्वारिका का विनाश करेगा तथा यादवकुल का अंत करेगा।' द्वीपायन पहले सोरियनगर के बाहर तापस आश्रम में पाराशर नामक तापस था। उसको एक अविनीत कन्या प्राप्त हुई। उसे लेकर वह यमुना नदी के द्वीप में अ गया इसलिए उसका नाम द्वीपायन पड़ गया। वह ब्रह्मचारी बेले. बेले का तप करता हुआ विचरण करता था। दीपायन ऋषि ने सना कि सर्वज सवंदी भगवान अरिष्टनेमि ने कहा है कि मेरे निमित्त से द्वारिका नगरी तथा यदुवंश का विनाश होगा। यह दुष्ट कार्य मेरे द्वारा कैसे होगा यह सोचकर वह वन में चला गया। भगवान ने आगे कहा-'तुमने जो अपने मरण का कारण पूछा था, उसे सुनो-'तुम्हारे ज्येष्ठ भ्राता की पत्नी जरा से उत्पन्न जराकुमार से तुम्हारी मृत्यु होगी।' तब यादवों की जराकुमार पर विषाद एवं शोकपूर्ण दृष्टि रहने लगी। जराकुमार ने सोचा---'अत्यन्त खेद की बात है कि किस प्रकार मैं वसुदेव का पुत्र होकर स्वयं ही छोटे भाई के विनाश का कारण बनूंगा।''अहो! यह तो महापाप होगा' ऐसा सोचकर कृष्ण की रक्षा हेतु यादवजनों से पूछकर और उन्हें प्रणाम कर जराकुमार वनवास में चला गया। जराकुमार के जाने पर हरि आदि यादव स्वयं को शून्य जैसा मानने लंगे। तब भगवान् आरेष्ट नेमि को प्रणाम कर सारे यादव संसार की, विशेषतः द्वारिका नगरी की तथा यादववंश की अनित्यता का चिन्तन करते हुए अपनी नगरी में चले गए। नगर में प्रवेश करके वासदेव कृष्ण ने घोषणा करवाई-'शीघ्र ही सारी सुरा और मद्य कादम्बवन की गुफा में ले जाओ क्योंकि भगवान् अरिष्टनेमि ने कहा है कि मद्यपान करके यादव कुमार द्वीपायन ऋषि को उत्पीड़ित करेंगे और वह कुपित होकर द्वारिका नगरी का विनाश कर देगा। कर्मकरों ने कृष्ण की आज्ञा का पूर्ण रूप से पालन किया। सारी सुरा कादम्ब-वन के शिलाकुंडों पर डाल दी गयी। पूरा कादम्ब-वन सुरा से भर गया। वह गुफा कादम्ब-वन से आच्छन्न थी, इसलिए उसे कादम्ब-वन गुफा कहा जाता था इसीलिए सुरा का नाम भी कादम्बरी प्रसिद्ध हो गया। बलदेव के भाई का नाम सिद्धार्थ था। उसके सारथि ने उसे स्नेहपूर्वक कहा-'भगवान्
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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